हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 – डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 11 –  डाक व्यवस्था ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

डाक व्यवस्था 

मेघदूत की डाक व्यवस्था महाकवि कालिदास ने भारतीय वांग्मय में की थी, आज तक इस अमर साहित्य का रसास्वादन, पाठ प्रतिपाठ हम करते हैं और हर बार नए आनंद सागर में गोते लगाते हैं। सात समंदर पार मेरे सामान्य पाठको को जानने में रुचि हो सकती है कि भारत की तुलना में यहां की डाक व्यवस्था कैसी है?

भोपाल में तो मेरा पोस्टमैन होली दिवाली अपेक्षा करता है कि उसे एक मिठाई के डिब्बे के साथ कुछ बख्शीश मिले, आखिर वह मेरी बुक पोस्ट से लेकर समीक्षार्थ किताबो, पत्रिकाओं के स्पीड पोस्ट तक और कभी कभार पारिश्रमिक का मनीआर्डर भी लाया करता है। यद्यपि ई मेल और सीधे बैंक खाते में पेमेंट प्रणाली ने बहुत कुछ बदल दिया है, पर फिर भी डाक के इंतजार का मजा अलग ही होता है। पत्नी चुटकी लेती है, की जितना इंतजार और स्वागत डाकिए का इस घर में होता है उतना शायद ही कहीं होता हो ।

भारतीय पोस्ट आफिस नेटवर्क गांव गांव तक व्याप्त है, गंगाजल से लेकर तिरंगे की बिक्री तक का काम पोस्ट आफिस ने किए हैं।

यहां के डाक विभाग की सामान्य जानकारी इस लिंक पर है >> https://www.usps.com/

कल बेटे के साथ यू एस पोस्ट आफिस जाना हुआ, बेटे को कोई जरूरी रजिस्टर्ड डाक भेजनी थी , उसने घर पर ही पेमेंट करके ट्रेकिंग आई डी सहित एड्रेस प्रिंट कर लिया और उसे लिफाफे पर चिपका कर डाक तैयार कर ली । उसने बताया की वह चाहे तो इसका पिकअप भी घर से ही अरेंज हो सकता है, जिसमे समय लग सकता है, अतः हमने स्वयं डाकघर जाकर वहां डाक देने का फैसला किया । हम डाकघर गए, केवल एक व्यक्ति ही वहां काम पर था , उसने डाक लेकर रसीद हमे दे दी । कोई भीड़ नहीं, कोई लाइन नहीं । सेल्फ सर्विस । लगभग स्वचालित सा ।

घर के बाहर एक मेल बाक्स लगा हुआ है, जिसमे बेटे की ढेर सी डाक पोस्ट से, कुरियर से कब आ जाती है पता ही नहीं लग पाता।

पर दूर देश में संदेश का महत्व निर्विवाद है । चिट्ठी आई है चिट्ठी आई है।

यहां के जिन उपेक्षित, सामान्य, अनदेखे मुद्दों पर आप पढ़ना चाहें जरूर बताएं । अवश्य लिखूंगा ।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈