हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं #74-9 – चितई गोलू मंदिर ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं -8 – बिनसर ”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं #74-9 – चितई गोलू मंदिर ☆ 

चितई गोलू मंदिर बिनसर से कोई तीस किलोमीटर दूर है । अल्मोड़ा से  यह ज्यादा पास है और आठ किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ हाईवे पर है। यहां गोलू देवता का आकर्षक मंदिर है। मंदिर के बाहर अनेक प्रसाद विक्रेताओं की दुकानें है जिनमें तरह तरह की आकृति व आकार के घंटे मिलते हैं। मुख्य गेट से लगभग तीन सौ मीटर की दूरी पर एक छोटे से मंदिर के अंदर सफेद घोड़े में सिर पर सफेट पगड़ी बांधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है।

उत्तराखंड में गोलू देवता को स्थानीय संस्कृति में सबसे बड़े और त्वरित न्याय के लोक देवता के तौर पर पूजा जाता है। उन्हें  शिव और कृष्ण दोनों का अवतार माना जाता है। उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश  विदेश से भी लोग गोलू देवता के इस मंदिर में लोग न्याय मांगने के लिए आते हैं। वे मनोकामना पूरी होने के लिए इस मन्दिर में अर्जी लिखकर आवेदन देते हैं और मान्यता पूरी होने पर पुनः आकर मंदिर में घंटियां चढ़ाते हैं। असंख्य घंटियों को देखकर  इस बात का अंदाजा लगता है  कि भक्तों की इस लोक देवता पर अटूट आस्था है, यहां मांगी गई  भक्त की मनोकामना कभी अधूरी नहीं रहती। अनेक लोग मन्नत के लिए स्टाम्प पेपर पर भी आवेदन पत्र लिखते हैं।आवेदन पत्र चितई गोलू देव, न्याय  के देवता, अल्मोड़ा को संबोधित करते हुए लिखते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं क्योंकि कोर्ट में उनकी सुनवाई नहीं हुई या न्याय नहीं मिला। राजवंशी देवता के रुप में विख्यात गोलू देवता को उत्तराखंड में कई नामों से पुकारा जाता है। इनमें से एक नाम गौर भैरव भी है। गोलू देवता को भगवान शिव का ही एक अवतार माना जाता है। अद्भुत और अकल्पनीय देश में लोक मान्यताओं और विश्वास की परमपराएं सदियों पुरानी है। न्याय की आशा तो ग्रामीण जन करते ही हैं लेकिन न्याय उन्हें राजसत्ता से शायद कम ही मिलता है। और अगर न्याय न मिले तो गुहार तो देवता से ही करेंगे। इसी विश्वास और आस्था ने गोलू देवता को मान्यता दी है। हो सकता है वे कोई राजपुरुष रहे हों या राबिनहुड जैसा चरित्र रहे हों और सामान्यजनों के कष्टहरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो तथा ऐसा करते-करते वे लोक देवता के रुप में पूजनीय हो गए।

मेरा ऐसा सोचना सही भी है लोक कथाओं के अनुसार गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी । उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्‍थापना की गई।

कोरोना काल में मंदिरों में लोगों का आना-जाना, काफी हद तक रोकथाम व पूजा-पाठ में निर्देशों का कड़ाई से पालन करने के कारण, कम हुआ है। इसलिए हमें इस मंदिर में ज्यादा समय नहीं लगा।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈