डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव
(आज प्रस्तुत है डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी की एक सार्थक लघुकथा समझ का फेर। )
☆ लघुकथा – समझ का फेर ☆
मेरे एक रिश्तेदार कुछ दिन मेरे यहां ठहरने आए मंगलवार उनका मौन व्रत था। वह टीवी देख रहे थे तभी उनसे मिलने उनका भतीजा आया चरण स्पर्श कर वह बैठ गया, चाचा जी ने कागज कलम उठाई लिखा कहां से आ रहे हो? तत्परता से उसने वहां पड़ा दूसरा कागज़ उठाया और पेन निकालकर लिखा घर से सीधे ही आ रहा हूं ।
चाचा जी ऐसे ही लिख-लिख कर प्रश्न करते रहे और वो लिख लिखकर उत्तर देता रहा अचानक चाचा जी गुस्से में उठ खड़े हुए और जोर से बोले…” बेवकूफ मौन तो मैं हूं तुम तो बोल सकते हो ।”
रसोई घर में खड़ी मैं सोच रही थी जिंदगी में हम सब भी कुछ बातों को ठीक से ना समझ पाने के कारण ऐसी ही गलतियां कर बैठते हैं।
© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव
मो 9479774486
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन लघुकथा