डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव
(आज प्रस्तुत है डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव जी की एक सार्थक लघुकथा अप्रत्यक्ष इलाज )
☆ लघुकथा – अप्रत्यक्ष इलाज ☆
“माँ अमित से कहो मेरा सामान न छुआ करें मुझे पसंद नहीं है” सुमित बड़बड़ाया।
माँ बोली ..”तुम्हारा छोटा भाई ही तो है और तुम कितने चिड़चिड़े हो।”
अगले दिन सुमित ऑफिस के लिए तैयार हुआ रुमाल रखने के लिए जेब में हाथ डाला तो एक कागज था निकाल कर पढ़ा “हैव ए नाइस डे फ्रॉम खुशबू।” उसे बड़ा अच्छा लगा। अब वह जितनी बार कपड़े निकालता जेब में से पुर्जे में कुछ ना कुछ अच्छा लिखा होता। तुम्हारा स्वभाव बहुत अच्छा है, तुम बहुत अच्छे हो। ऐसी ही छोटी-छोटी पंक्तियों से थोड़े ही दिनों में उसका स्वभाव पूरी तरह बदल गया। गुस्सा हवा हो गया।
एक दिन उसने भाई को अलमारी से कपड़े निकालते देखा तो प्यार से कहा तुम मेरा सारा सामान मुझसे बिना पूछे ले सकते हो बस कपड़े मैं तुम्हें निकाल कर दूँगा।
फिर माँ से पूछ कर लॉन्ड्री के कपड़ों के बहाने खुशबू को ढूंढने गया।
काउंटर पर सरदार अंकल और एक अपाहिज लड़की बैठी थी उसने पूछा ..”मेरे कपड़े कौन धोता प्रेस करता है?”
अंकल जी बोले ..”बेटा यह तो मेन शॉप है यहां से कितने सारे धोबी के यहां कपड़े जाते हैं बता नहीं पाऊँगा।” उसके जाते ही सरदार जी ने बाजू में बैठी लड़की से कहा ..”बेटा तुम्हें ढूंढते हुए यहां तक आ गया पर तुम्हें पहचान नहीं पाया।”
खुशबू बोली ..”अंकल दरअसल हमारी कल्पना हकीकत से बहुत ज्यादा खूबसूरत और परफेक्ट होती है। वो तो एक दिन इसकी मम्मी को यहां फोन पर बात करते सुना कि मेरा बेटा बहुत चिड़चिड़ा है। मैं बहुत दुखी हूँ तब मैंने सोचा कि मैं चल तो नहीं सकती पर अपने शब्दों से ही किसी के जीवन को बदल दूं और कई बार अप्रत्यक्ष रूप से किया गया इलाज बहुत कारगर होता है लेकिन अब से उस पुर्जे की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वाकई सारगर्भित रचना, बधाई