श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय लघुकथा – बोझ-।)
☆ लघुकथा ☆ बोझ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
चेरी ब्लॉसम स्कूल में कार्यरत हरदीप और उसकी पत्नी नवदीप अपनी सहकर्मी शिक्षक अनामिका की छः साल की बेटी को आज अपने साथ अपने खेत में लेकर आए थे। अनामिका दो साल से इस स्कूल में काम कर रही थी। उसकी बच्ची भी उसके साथ ही स्कूल में आती थी। अनामिका के पति चार साल से ऑस्ट्रेलिया में थे। बहुत ख़ूबसूरत और प्यारी सी वह बच्ची खूब मस्ती में ट्यूबवेल की धार के नीचे नहाते हुए उनके बच्चों के साथ अठखेलियाँ कर रही थी। वह कभी खेत की ओर दौड़ जाती, कभी नाचने लगती। नवदीप ने पति से कहा, “देख रहे हो, यह वही बच्ची है जो स्कूल में किसी से नहीं बोलती। कितनी मस्ती कर रही है।”
“पता नहीं आज ये हमारे साथ आने के लिए तैयार कैसे हो गई? ये तो आधी छुट्टी में भी बच्चों के साथ खेलने की बजाय या तो अपनी माँ के पास चली जाती है या किसी कोने में बैठ कर पेंटिंग करने लगती है।”
“अनामिका बता रही थी कि सोती भी उससे चिपक कर है। इसका हाथ सोते हुए भी उसकी देह के किसी हिस्से पर रहता है।”
“इस उम्र में इतनी संजीदगी अच्छी नहीं।” हरजीत ने एक लम्बी साँस ली।
बच्चे जी भर कर नहा चुके थे और अब आम खा रहे थे। नवदीप ने पूछा, “सौम्या तुम स्कूल में किसी से बोलती क्यों नहीं?” सौम्या गंभीर हो गई, बिलकुल वैसे ही जैसे स्कूल में होती थी।
“बताओ न बेटा।” नवदीप ने प्यार से उसकी गाल थपथपा दी।
“मम्मा पास जाना है।”
“हाँ बस अभी चल रहे हैं मम्मा पास, बता दो प्लीज़, तुम स्कूल में किसी से बोलती क्यों नहीं?”
“मुझे मम्मा के पास ही रहना है आंटी।”
“मम्मा के पास ही तो रह रही हो बेटा।”
“मम्मा जब गु़स्सा करती है तो कहती है तुझे ऑस्ट्रेलिया भेज दूँगी।” सौम्या जैसे दहशत से पीली पड़ गई थी।
“ओ माई गॉड! तो यह है कारण। नन्हीं सी जान और इतना बड़ा बोझ…” बरबस नवदीप की सिसकी निकल गई। उसने सौम्या को कसकर सीने से चिपका लिया। सौम्या की देह काँप रही थी और नवदीप की आवाज़। सिसकती नवदीप सौम्या की पीठ पर हाथ फेरते हुए लगातार कहे जा रही थी, “तू हमेशा मम्मा के पास रहेगी… तुझे कोई ऑस्ट्रेलिया नहीं भेजेगा… कभी नहीं…”
© हरभगवान चावला
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