श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का एक सटीक व्यंग्य “कलजुग है सांतिबाबू, कोरोना फिर तो आयेगाई”। इस व्यंग्य को पढ़कर निःशब्द हूँ। श्री शांतिलाल जी की तीक्ष्ण व्यंग्य दृष्टि से कोई भी ऐसा पात्र नहीं बच सकता ,जिस पात्र के चरित्र को वे अत्यंत सहजता से अपनी मौलिक शैली में रच डालते हैं। हम और आप उस पात्र को मात्र परिहास का पात्र समझ कर भूल जाते हैं। फिर मालवी भाषा की मिठास को तो श्री शांतिलाल जी की कलम से पढ़ने का आनंद ही कुछ और है। श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य पर टिप्पणी करने के जिम्मेवारी पाठकों पर है । अतः आप स्वयं पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल जैन जी से ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। )
☆ व्यंग्य – कलजुग है सांतिबाबू, कोरोना फिर तो आयेगाई ☆
ये पहलीबार नहीं है जब किसी घटना के लिये उन्होंने कलयुग को जिम्मेदार माना हो. उनकी नज़र में मृत्युलोक में जितने कष्ट, तकलीफें, बुराइयाँ और परेशानियाँ हैं उसकी एक मात्र वजह कलयुग का होना है. यहाँ तक कि बवासीर की अपनी कष्टसाध्य होती जा रही बीमारी के लिये भी वे यही कहते सुने जाते हैं – ‘कलजुग है तो भुगतना तो पड़ेगाई’.
आज खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा है कि – ‘कलयुग में वायरस से हम लड़ नहीं सकते हैं.’ अपनी मान्यता को एक ऊंची आसंदी से समर्थन मिल जाने से वे इस समय सातवें आसमान पर हैं. ‘मैं तो सुरू दिन से बता रा हूँ’. सुबह से सैंतीस लोगों से कह चुके हैं. इस समय, अड़तीसवाँ मैं उनकी ग्रिप हूँ और कलयुग को शिद्दत से महसूस कर रहा हूँ.
वे नागवार गुजरनेवाली हर घटना को कलयुग से जोड़ लेते हैं. बोले – ‘सांतिबाबू, कलजुग में कोरी के छोरे कलेट्टर बन रये हैं, बाम्भनों को चपरासी की नौकरी नई मिल रई’. अक्सर, हमने उन्हें दूधवाले से उलझते देखा है. कहते हैं – ‘जमानों कैसो आ गओ, कोकाकोला सुद्ध मिल रई, मगर दूध एकदम असुद्ध. जे कलजुग के ग्वालन यदुवंस को बदनाम कर रये’. एक बार वे अतिसार के शिकार हुये. बोले – ‘खानपान की चीजें असुद्ध मिल रई कलजुग में. दस्त तो लगेंगे ही. तुमने सुनी है कब्बी, के सतजुग में किसी को दस्त लगे हों? नई ना’.
उनके अनुसार हमारे पूर्वजों ने चार हज़ार सात सौ बारह वर्ष पूर्व घोषणा कर दी थी कि कलयुग में आर्यावर्त के उत्तर में स्थित एक देश कोरोना नामक विषाणु उत्पन्न करेगा जिससे समूची मानवता के लिये खतरा बनेगा. वे भूत के ज्ञाता हैं, वर्तमान बताते ही हैं और भविष्य बताने में तो मास्टरी है ही उनकी. बोले – ‘नगर में महामारी हमरी गलियन से ही फैलेगी, नालियाँ इतनी गन्दीभरी पड़ी हैं’. उनका ये अदम्य विश्वास है कि सतयुग में यहीं इन्हीं गलियों में दूध की धाराएँ बहा करतीं थीं जो कालांतर में गन्दी नालियों में परिवर्तित हो गई हैं. जैसे जैसे कलयुग बढ़ेगा नालियाँ और ज्यादा चोक होने लगेंगी. मुन्सीपाल्टी कछु ना कर पायगी. कुछ दिनों पूर्व, मोहल्ले में हुए एक विजातीय विवाह पर उनकी प्रतिक्रिया थी – ‘उच्चकुल की कन्यायें निम्नकुल में ब्याह रहीं हैं. समझ लो भैया के घोर कलजुग आवे वारो है’. ए जर्नी फ्रॉम सिंपल कलयुग टू घोर कलयुग!
कभी-कभी वे आकाश की ओर देखकर बुदबुदाते हैं – ‘हे प्रभु, अब कलजुग की और लीलाएं देखने से पेलेई उठा ले’. हालाँकि, वे आना नहीं चाहते. जब भी थोड़ा सा बीमार होते हैं तब घरवालों के पीछे पड़ जाते कि उनको आईसीयू में ही भर्ती कराया जाये. यमदूत को जनरल वार्ड से आत्मा ले जाने में ज्यादा आसानी रहती है, आईसीयू में सिक्युरिटी गार्ड घुसने नहीं देता, शायद तो इसीलिये.
रज्जूबाबू उनके सुपुत्र हैं. बहुत सम्मान बहुत करते हैं पिता का, इतना कि वे आगे बैठे हों तो रज्जूबाबू पीछे के दुआर से निकल जाते हैं. आज असावधानी से सामने पड़ गये. उन्होंने बैट-मेन के पीले प्रिंट वाली काली टी-शर्ट पहन रखी थी. वे बोले – ‘काए रज्जूबाबू, सीधे चीन से चले आ रये का? देख रये हो सांतिबाबू, कलजुग में इनकी अक्कल मारी जा रई. दुनिया चमगादड़ से भाग रई है और जे हैं के उसी की कमीज़ पेन के निकल रये. अब इने कौन समझाये कि ये कलजुग है, कोरोना चमगादड़ खाने से ही नहीं होत, पहनने से भी हो जात है’.
मौका मुनसिब जानकार मैं धीरे से सटकने लगा. वे ऊँची आवाज़ में बोले – ‘मूं पे कपड़ा लपेट के जईयो सांतिबाबू, कलजुग चलरा है. कब कौनों असुरी सक्ति कोरोना के जीव पकड़ के आपकी नाक में घुसेड़ देहैं, कौन जाने’.
निकल गया हूँ और कन्फ्यूज्ड हूँ – कलयुग पीछे की ओर छोड़ आया हूँ या उसी की तरफ भाग रहा हूँ.
© शांतिलाल जैन
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