श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य “थैंक यू मिस्टर स्टीव चैन”।)
☆ शेष कुशल # 34 ☆
☆ व्यंग्य – “थैंक यू मिस्टर स्टीव चैन” – शांतिलाल जैन ☆
शुक्रगुजार हैं हम आपके मि. स्टीव चैन. देश में कुपोषण के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या में काफी सीमा तक कमी आई है तो उसका श्रेय आपके क्रिएशन और स्मार्ट फोन को जाता है. आपने यू-ट्यूब बनाया. मम्मियाँ हाथ में थमा देती हैं तो बच्चा खाना ठीक से खा लेता है. शुरू शुरू में तो मम्मा ‘लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा’ लगा देती है, बाद में बालक स्वयं ‘धूम मचा ले धूम’ से होता हुआ ‘लव मी लव मी, किस मी किस मी’ तक पहुँच जाता है. वैरी इंटेलीजेंट बॉय. मम्मा को प्राउड फील होता है, अक्कल दाढ़ आने से पहले ही मोबाइल चलाना जो आ गया है. स्मार्ट फ़ोन के अविष्कार से पहले बढ़ते बच्चे दिनभर कंचे, गिल्ली-डंडा, पतंगबाज़ी के चक्कर में भोजन करना भूल जाते और कुपोषण का शिकार हो जाते थे. मम्मियों की राह अब आसान हो गई है. कन्फ्यूजिया जाते हैं आप – शिशु खाते खाते देख रहा है कि देखते देखते खा रहा है. जो भी हो खा तो रहा है. शिशुओं के पोषण के लिए आपने महत्वपूर्ण संसार रचा है स्टीव, आभार आपका.
कुपोषण की समस्या से निपटने में नूडल्स का भी बड़ा योगदान है. सट्टाकदेनी से गटक लेता है मम्मा का ‘द गुड बॉय’. सब्जी-रोटी चबाने का जमाना तो रहा नहीं. पेट जब निगल कर भरा जा सकता हो तो चबाने की मेहनत क्यों करना ? ये आपके यू ट्यूब, स्मार्ट फोन और नूडल्स के शानदार गठजोड़ का ही परिणाम है स्टीव कि आर्यावर्त में मोटे, थुलथुल, गोल मटोल, गब्दू बाल गोपाल की आबादी का ग्राफ ऊपर की ओर है. इत्ते गापुची-गापुची कि देखते ही गुदगुदी करने को मन मचल मचल उठता है. गिलिss-लिलिsss-गिलि…बेली में अंगुली गढ़ा दो तो मेमोरी फोम में बननेवाले की गड्ढ़े की तरहा गड्ढा बन कर बलून फिर नार्मल हो जाता है. कुपोषण से अतिपोषण तक की ये यात्रा शिशु वर्ग से शुरू होकर बेरियाटिक सर्जरी पर समाप्त होती है.
स्मार्ट फोन स्मार्ट मम्मी से भी ज्यादा स्मार्ट होता है. वो जानता है रोते बच्चे को चुप कराने की कला. स्मार्ट फोन आने से पहले बच्चे कैसे पाले जाएँ इसका तो उस समय की यशोदाओं को इल्म भी नहीं था. वे अपने कान्हाओं को थप्पड़ मार कर चुप कराया करतीं. जितना जोर से मारती दुलारे उतनी जोर से रोते, फिर जितना जोर से रोते उससे ज्यादा जोर से मार पड़ती. थप्पड़, मार और रोने का एक दुष्चक्र था स्टीव भिया जिसमें नंदबाबा भी हस्तक्षेप नहीं कर पाते थे. दुष्चक्र में कभी कभी झाडू या मोगरी की एंट्री भी हो जाती. फिर माँ थक कर रोने लगती, आँखों के तारे रोते रोते ही थक कर सो जाते. वैसे माँ को खाना जल्दी जल्दी खिलाने में आनंद भी नहीं आता था. दो घंटे तक झीकती रहती तब जाकर कान्हा का पेट भर पाता, भर पाता तो भर पाता नहीं तो नहीं भी भर पाता. इन दिनों मम्मी को एक दो बार ही बोलना होता है – ‘हरी-अप बेटू, ईट फ़ास्ट’, बाकी माहौल यू-ट्यूब संभाल लेता है. मम्मा इज आलसो इन हरी. वाट्सअप जो देखने होते हैं. नेचुरली, जितना अधिक स्क्रीन टाईम मम्मियाँ अपने बच्चों को देंगी उतना स्क्रीन टाईम वे अपने लिए भी निकाल सकेंगी. मोबाइल सनी के हाथ में हो तो बुक्का-फाड़ के रोना किस चिड़िया का नाम है ?
यू ट्यूब के फायदे केवल खाने-खिलाने तक सीमित नहीं हैं. इससे बच्चा ‘फिंगर एक्सरसाईज’ भी कर लेता है. उंगलियों की थकान जैसी मामूली चीज उसे अनवरत स्क्रॉल करने से रोक नहीं पाती. गेम वर्चुअल हो तो घरों की खिड़कियों के शीशे टूटने से बचे रहते हैं. यू ट्यूब से लेक्चर सुना जा सकता हो तो किताब क्यों पढ़ना ! और लिखना तो कतई नहीं. कागज़ बच जाता है, पेड़ कटने से बच जाता है, पर्यावरण बचा रहता है.
हंगर इंडेक्स में भारत को 111वें स्थान पर रखनेवाली रिपोर्ट सरासर गलत है. सच तो ये है कि जिन लोगों ने इसे बनाया है वे सोफे पर बेतरतीब लेटे, बर्गर निगलते, यू-ट्यूब चलाते हमारे होनहारों से कभी मिले ही नहीं. हम उनकी रिपोर्ट को गलत साबित कर पा रहे हैं तो सिर्फ तुम्हारी वजह से मि. स्टीव चैन – तुम्हारा शुक्रिया.
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