श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  उस वाले टेम्पो की प्रतीक्षा में.…”।) 

☆ शेष कुशल # 42 ☆

☆ व्यंग्य – “उस वाले टेम्पो की प्रतीक्षा में…” – शांतिलाल जैन 

दोस्तों, एक सपना साझा कर रहा हूँ. इस बार के लोकसभा चुनाव के दरमियां इसे पहली बार देखा, तब से ये मेरा पीछा छोड़ ही नहीं रहा. ज्यादातर दिन में आता रहता है, कभी कभार रात में भी. अक्सर अख़बार पढ़ते, समाचार सुनते, पत्रिका पलटते हुए तो निश्चित ही मैं इस सपने में खो जाता हूँ. मैं जानता हूँ ये कभी सच नहीं होने का मगर इंसान की फितरत – एक बार कोई सपना पाल ले तो उससे पीछा छुड़ाना आसां नहीं होता. इन दिनों मैं इसी बीमारी से गुजर रहा हूँ. सपना कुछ यूं है कि श्रेष्ठीवर्य धनराज की कोठी से काले धन के बोरे भरकर निकला हुआ टेम्पो रास्ता भूल गया है. उसे किसी जननायक के घर पहुँचना था. गफलत में ड्रायवर मुझ गरीब की कुटिया में बोरे उतारकर चला गया है. बस इतना सा ख्वाब है.

टेम्पो वाली बात गल्प नहीं है भाईसाहब. किसी ऐरे-खैरे ने नहीं कहा है, उनने कहा है. हमें भरोसा है उनकी बात पर. इंटेलिजेंस तो उनकी ज़ेब में धरा रहता है. उनको सब पता है. ऑम्नी-पॉवरफुल. जिस दिन चाहेंगे सारे टेम्पो जब्त और  टेम्पो मालिक कारागार में. इसके पहले कि टेम्पो चलाने पर बैन लग जाए या कि इंडिया में ड्राईवरलेस टेम्पो चलने लगे, सपना साकार हो जाए प्रभु. स्टीयरिंग घूमे तो एक बार शांतिबाबू के घर की तरफ भी घूमे. आस ड्राईवर पर टिकी है, इंसान है गफलत तो कर ही सकता है. अपन इंतज़ार में कि वो गफलत करे और टेम्पो अपन के दरवज्जे पे….कसम से उसी दिन पौ-बारह.

कैसा दीखता होगा कालेधन का टेम्पो ? स्पेशिअल सीरिज के नंबर होते होंगे गाड़ी के, देख के ही समझ जाती होगी पुलिस ? रोको मत, जाने दो. क्या माल भरा है, कहाँ से चला है, कहाँ जा रहा है. दाई से पेट छुप नहीं सकता. काले चश्मेवाले दरोगाजी को सब पता. टेम्पो की नंबर प्लेट भी काली. काली प्लेट पे काले नंबर खास नज़रवाले ही पढ़ पाते होंगे. काले का अलग ही संसार. काले कारनामों पर गहरी पकड़ है दरोगा जी की. काले टेम्पो जब राईट विंग से निकलते हैं तो उनमें लता-पत्र-बेल नहीं होती. लेफ्ट वालों के बस का नहीं रहा, न टेम्पो भिजवाना या न टेम्पो मंगवा पाना. दरोगाजी काले धन के टेम्पो का चालान तो क्या ही बना पाते होंगे. किसी अर्दली ने गलती से बना दिया तो कालेपानी की सजा पक्की समझो.

वाईफ कहती है मुझे सिजोफ्रेनिया हो गया है. पता नहीं, मगर दिमाग में क्राईम अवश्य पनपने लगा है. कालेधन का टेम्पो लूटने के आरोप में शांतिबाबू गिरफ्तार जैसा समाचार मिले तो आश्चर्य मत कीजिएगा. वैसे गिरफ्तारी होगी नहीं. धन लूट का हो तो उसके लूट की एफआईआर नहीं होती, हो पाती तो धन काला ही क्यों होता, लूट का धन ज़ेब में हो तो मामला रफा-दफा करवा पाने की अकल तो आ ही जाती है.

विचार हैं कि थमने का नाम ही ले रहे. कभी शहर में तिपहिया टेम्पो चला करते थे, भटसूअर. जब नहीं बने थे तब भी काला धन तो हुआ ही करे था. काले घोड़ों वाला रथ श्रेष्ठीवर्य की अट्टालिका से निकला और राजमहल में समा गया. कोई कोई अमात्य के घर भी. सारथियों की गफलत में कितने सम्राटों के इतिहास बदल गए भाईसाहब. मैं अकिंचनजन वर्तमान बदल जाने की आस पाले बैठा हूँ.

काले धन के टेम्पो आसमान में भी चलते हैं क्या ? एयरटैक्सी टाईप. माल भरा और नॉन-स्टॉप पनामा, लिखेंस्टाईन या स्विटज़रलैंड में. मैं तो इन दिनों जब भी जिस भी दिशा से टेम्पो की आवाज़ आए, उसी समय उसी दिशा में साथ साथ दौड़ पड़ता हूँ. कभी कभी तो नंगे पाँव ही, कपड़ों का भी ख्याल नहीं रहता. कभी तो विमान का इंजिन फेल होगा. वाईफ कहती है मैं सिजोफ्रेनिक हो गया हूँ. इस बीच आकाश में चीलगाड़ी उड़ने की आवाज़ आई. हो न हो ये कालेधन से लदी चार्टर्ड फ्लाईट है. मैं कुछ दूर उपर देखते देखते उसीकी दिशा में सड़क पर दौड़ा, जब लगा कि आज नहीं गिरेगा ये तो हांफता हुआ घर लौट आया.

लेकिन भाई साहब, मैं सिजोफ्रेनिक नहीं हूँ. कितने सपने मेरे इस एक  सपने पर आकर टिक गए हैं. सबसे बड़े बेटे की शादी करना बाकी है, जिद पाले है कि पापा रिहाना को बुलवाना, नाचने के लिए. अब टेम्पो आए तो रिहाना आए, वरना सुनते रहो – ‘पापा आपने हमारे लिए किया ही क्या है?’ छोटू थोड़ा समझदार है, पढ़ता भी ठीक-ठाक है. बाप से असंतुष्ट वह भी रहता है मगर डॉयलॉग मारकर मन नहीं दुखाता. नीट परीक्षा दी है उसने. रेंकिंग में वो उस जगह पर है जहाँ उसका एडमिशन किसी प्राईवेट कॉलेज में ही हो सकता है, डेढ़ से दो करोड़ रूपये लगेंगे. टेम्पो आए तो डॉक्यूमेंट वेरीफाई कराएं. बेटी एम्एस करने यूएस जाना चाहती है और बैंक लोन मिलेगा नहीं. और वाईफ़!! घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने.  नौ हज़ार का हार खरीदने की अपन की हैसियत नहीं मगर नौलखा हार का सपना हरदम उसकी आँखों में तैरता रहता है. परिवार के कुछ साझा सपने हैं हायब्रीड एसयूवी बुक करनी है, लक्ज़ुरियस विला खरीदनी है, यूरोप में हॉलिडेयिंग के लिए जाना है. बच्चे समझते हैं मैं अपनी जवाबदारी से बचने के लिए पागलपन का नाटक कर रहा हूँ. नहीं भाईसाहब, काले धन से भरे टेम्पो का इंतज़ार मैं उन्हीं सब के लिए तो कर रहा हूँ. सिजोफ्रेनिक नहीं हूँ, गुन्ताड़े में हूँ. छींके बिल्ली के भाग से टूटते ही हैं. एकाध टेम्पो कभी तो अपन के भी अलसट्टे में फँसे. कथित पागलपन पर वाईफ कभी गुस्सा करने लगती है तो कभी रोने लगती है. बच्चे मुँह फुलाए फुलाए घूमते हैं. सामने गैलरी में जुनेजा भाभी थोड़ी थोड़ी देर में मेरी ओर व्यंग्यात्मक मुस्कान से देख कर अपने हसबंड को पूरा वाकया बता रही है. कोई बात नहीं जुनेजा, जिस दिन सपड़ गया ना एकाध टेम्पो उस दिन तुझे तो देख लूँगा.

अभी तो फिर से अखबार में, नेट पर भाग्य बतानेवाले कॉलम  टटोलने लगा हूँ. धामवालों का ताबीज़ गले में और नीलम तर्ज़नी में धारण कर लिया है. एक रुद्राक्ष भी मंगवाया है, इस सप्ताह में आ जाएगा. मुतमईन हूँ, किस्मत अवश्य जागेगी, जब करण अर्जुन वापस आ सकते हैं तो काले धन से भरा टेम्पो भी आएगा. आएगा तो खाली तो अपन की कुटिया में ही होएगा.

लो आ ही गया, भट-भट की आवाज़ चौराहे की तरफ से आ रही है, मैंने उस तरफ दौड़ लगा दी है…….

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© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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