डॉ . प्रदीप शशांक 

चालान सज्जनता का 
हम अपनी मोपेड पर आराम से ( लगभग 20 किलोमीटर की गति से) चले जा रहे थे । मस्तिष्क में विचारों का अंतर्द्वंद्व चल रहा था । तभी अचानक यातायात पुलिस के सिपाही ने सड़क के बीच डंडा लहराते हुए हमारे वाहन को रोक दिया ।
हमने पूछा – “क्या हो गया हवलदार साहब ?”
“देखते नहीं , चेकिंग चल रही है । अपने वाहन को किनारे खड़े कर साहब को कागजात दिखाओ ।”
हमने अच्छे नागरिक के दायित्व का परिचय देते हुए उसे समस्त कागजात दिख दिये । इंस्पेक्टर ने मेरा ऊपर से नीचे तक  मुआयना किया और मुझे घूरते हुए मेरे कागजात को उलट पलट कर देखा तथा गुस्से में बोला – “साला बहुत ईमानदार बनता है , पूरे कागजात लेकर चल रहा है , तुझे अभी देखता हूँ । यहां किनारे खड़े हो जाओ , पहले इन चार  पांच ग्राहकों को निबटा दूं ।”
हमने देखा कि अन्य लोगों ने इंसपेक्टर को वाहन के कागजात दिखाने की जगह अपनी गाड़ी की हैसियत मुताबिक सौ रुपये , दो सौ रुपये दिये और वाहन चालू कर चलते बने ।
हम आश्चर्य से खड़े देख रहे थे । यातायात हवलदार गजब का मनोवैज्ञानिक लग रहा था । वह केवल उन्हीं लोगों को रोक रहा था  जिनसे आसानी से रुपये प्राप्त हो सकते थे । मेरे देखते – देखते असामाजिक तत्व टाइप के व्यक्ति एक ही वाहन पर 3–3 सवार होकर भी फर्राटे के साथ उसके सामने से निकल रहे थे । वह उन्हें नहीं रोक रहा था । कुरता पायजामा वाले व्यक्ति भी आराम से निकल रहे थे , वह उन्हें सलाम ठोंक रहा था । कालेज के लड़के लड़कियां भी  मुंह पर कपड़ा बांधे हवलदार को  चिढाते हुए निकल रहे थे । इनकी आड़ में मुंह पर कपड़ा बांधे अपराधी तत्व वही निकल गये होंगे । उन्हें तो ये लोग वैसे भी नहीं रोकते, हां उनको पकड़ने के नाम पर नाकाबंदी कर सामान्य जन को अवश्य परेशान करते हैं ।
वह हवलदार केवल धीमी गति से यातायात के नियमों का पालन करते चल रहे सज्जन व्यक्तियों को ही रोक रहा था । वहीं इंस्पेक्टर उन व्यक्तियों के वाहन जब्त करने की धमकी देकर जबरन उनसे रुपये वसूल रहा था ।
हमनें एक व्यक्ति से पूछा — “जब आपके पास वाहन के समस्त कागजात हैं तो आपने रुपये क्यों दिये ?”
“अरे कौन इनके चक्कर में फंसे, सौ रुपये देकर आगे बढ़ो ।”  तभी इंस्पेक्टर ने मेरी ओर मुखातिब होकर कहा — “क्यों बे बड़ा पत्रकार बन रहा है , उससे क्या इंटरव्यू ले रहा था ?”
“कुछ नहीं यूं ही ——— “
“यूं ही के बच्चे, कागजात पूरे हैं तो क्या तू समझता है कि बच जावेगा । मेरे चंगुल से आज तक कोई नहीं बच कर गया है । —— कहते हुए उसने मेरी मोपेड का आगे से पीछे तक निरीक्षण करना शुरू किया ।  लाइट क्यों नहीं जल रही ?
“अभी अंधेरा नहीं हुआ साहब, इसीलिए लाइट नहीं जलाई । वैसे मेरी गाड़ी की आगे पीछे दोनों की लाइट बराबर जलती है । इंडिकेटर भी दोनों ठीक हैं । गाड़ी का बीमा भी है और ——- “
Oओ”बस बस ज्यादा बात नहीं , हम स्वयं चेक कर लेंगे । वाहन का निरीक्षण करते करते अचानक उसके चेहरे पर चमक आ गई और उसने मुझे घूरते हुए कहा — ये नम्बर प्लेट पर क्या लिखा है ?”
“नम्बर प्लेट पर नम्बर ही लिखे हैं  और क्या लिखा होगा ।”
“ये नम्बर किस भाषा में लिखे हैं ? “
     ‘
“जी , हम हिंदी के पक्षधर हैं अतः नम्बर प्लेट में हिंदी में शब्द और अंक लिखे हैं । म . प्र . 20  च  0420 “
“अबे ये च की अंग्रेजी क्या है? “
“जी,   सी . एच . ।  जैसे के . ए . की हिंदी का ,  एच. ए.  हा , एफ . ए . फ़ा , एम .ए . मा , उसी तरह हमने सी .एच. को च  लिखा है ।”
“हूँ , अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे । बहुत चतुर बनता है चालान कटेगा , जुर्माना लगेगा 500 रुपये । “
हम अब थोड़ा घबरा गए । हमने कहा -“500 रुपये किस बात के ।”
“नम्बर गलत ढंग से लिखने के । तुम किसी को टक्कर मारकर भागोगे तो तुम्हारे वाहन का नम्बर कोई भी यातायात का सिपाही आसानी से नहीं पढ़ पावेगा । सीधी सादी अंग्रेजी में नम्बर क्यों नहीं लिखे  और ये 420 नम्बर के अलावा तुम्हें और कोई नम्बर नहीं मिला ? “
“इंस्पेक्टर साहब , जब हम आर . टी . ओ . ऑफिस गये थे  तब वहां पर हमें बताया गया कि कुछ विशेष नम्बर लेने पर अतिरिक्त रुपये लगेंगे , जैसे 001 , तीन इक्के 111, सात सौ छियासी 786 , आदि आदि , तब हमबेन उनसे कह दिया था कि हम अतिरिक्त रुपये नहीं दे सकेंगे  । अतः जो नम्बर कोई न ले वह मुझे दे देना । सो उन्होंने मुझे यह नम्बर दे दिया । अब आप लोगों का रोज का ही यह काम है कि सज्जन व्यक्ति को चोर साबित करें —— “
“बस बस अपना भाषण अपने पास रखो और निकालो पांच सौ रुपये ।”
बहुत देर तक बहस बाजी चलती रही, आखिरकार सौदा 100 रुपये में तय हो गया  । मुझे लगा सज्जनता का चालान कट रहा है । में 100 रुपये देते हुए सोच रहा था कि  घन्टा भर समय व्यर्थ नष्ट किया , इससे तो अच्छा था कि पहले ही बिना बहस किये रुपये देकर निकल जाते । इनसे पार पाना मुश्किल ही है ।
हम आगे बढ़ गये थे, लेकिन  मस्तिष्क में विचारों  का अंतर्द्वंद्व तीव्र हो गया था । रह रह कर अनेक प्रश्न मस्तिष्क में चक्कर काट रहे थे – क्या हमेशा ही सज्जनता की हार होती रहेगी ? गलत को प्रश्रय और सही को सजा मिलती रहेगी ?
© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,म .प्र . 482002
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