श्री मनीष तिवारी 

साहित्यिक सम्मान की सनक 

(प्रस्तुत है संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं ,अपितु राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध साहित्यकार -कवि  श्री मनीष तिवारी जी का एक सार्थक एवं सटीक व्यंग्य।)  

सच कह रहा हूँ भाईसाब उम्र को मत देखिए न ही बेनूर शक्ल की हंसी उड़ाइये, मेरी साहित्यिक सनक को देखिए सम्मान के कीर्तिमान गढ़ रही है, सनक एकदम नई नई है, नया नया लेखन है, नया नया जोश है ये सब माई की कृपा है कलम घिसते बननी लगी, कितनी घिसना है कहाँ घिसना है ये तो अभी नहीं मालूम, पर घिसना है तो घिस रहे है।

हमने कहा- “भाईसाब जरूर घिसिये पर इतना ध्यान रखिए आपके घिसने से कई समझदार पिस रहें हैं।” वे अकडकर बोले-  “आप बड़े कवि हैं इसलिए हम पर अत्याचार कर रहें हैं।आपको नहीं मालूम हम पूरी दुनिया में पुज रहे हैं। हमारी रचनाएं दुनिया के अनेक देशों में उड़ते उड़ते साहित्य पिपासुओं द्वारा भरपूर सराही जा रहीं हैं।”

मैंने एक चिंतनीय लम्बी साँस खींची और कहा – “आपकी इसी प्रतिभा का तो हमें मलाल है, जो कविता हमें और हमारे कुनबे को समझ नहीं आ रही है आपकी उसी कविता पर पूरी दुनिया तालियां बजा रही है। ये हिंदी साहित्य की भयंकर  बीमारी है। विदेशियों का षड्यंत्र है ।”

मुझे तो लगता है जिस तरह पूरी दुनिया ने भारतीय बाजार पर कब्ज़ा कर कोहराम मचा दिया है वैसे ही अनर्गल प्रलाप को सम्मानित कर भारत के गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, कथा कहानी- नाटक को कुचलने की तैयारी है। और आप अपने सम्मान पर ऐंठे हैं, गर्वित हैं पर मुझे तो इस सम्मान में भी षड्यंत्र की बू आ रही है। श्रीमान जी व्यर्थ के बकवास सम्मान से आपकी छाती फूली जा रही है। माना कि आपको सम्मान का अफीमची नशा है जिसकी हिलोर मारती रंग तरंग में आप पूरी तरह वैचारिक रूप से नङ्ग धड़ंग हैं। मर्यादा का कलेवर आपको ढक नहीं सकता। लेकिन हे साहित्यिक विकलांगो इसे अपने ही बीच रहने दो, वरना 21 सदी के प्रारंभिक तीन दशकों का  साहित्यिक सांस्कृतिक अवदान जब भी लिखा जाएगा स्वयम्भू  सम्मानित साहित्यिक सनकियों में आपका भी नाम आएगा।

आप आत्ममुग्ध हो अपने सम्मान से स्वयम अभिभूत हो, आप सोचते हो कि आप जीते ही रहोगे, भूत नहीं बन सकते। प्रेमचंद, परसाई, नीरज, महादेवी, दुष्यंत और जयशंकर प्रसाद के वंशज आपके तथाकथित साहित्य को अलाव में भी फेंक दें पर आप भभूत नहीं बन सकते। आपका पेन सामाजिक सांस्कृतिक, कुरीतियों, कुप्रथाओं पर अमोघ बाण नहीं हो सकता, और आप जैसे सनकियों से राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता।

धन दूषित हो जाये तो शास्त्र में शुद्धि का उपाय है पर साहित्य दूषित होगा तो राष्ट्र की वैचारिक समृद्धि पर प्रश्न चिन्ह लगेगा इसलिये हे माँ सरस्वती या तो इनकी कलम को शुभ साहित्य से भर दो या फिर इन्हें साहित्यिक सनक से मुक्त कर दो।

© कवि मनीष तिवारी, जबलपुर

 

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सुरेश कुशवाहा तन्मय

आज के समय का वास्तविक यथार्थ, साहित्य जगत में आज सम्मानों की होड़ सी लगी है, इस बाजारू प्रतिस्पर्धा से हटकर किसी इक्की-दुक्की योग्यता को सम्मान मिलने पर उसे व्यक्त करने में भी संकोच सा लगता है। विषय पर सटीक व्यंग के लिए आदरेय सही मनीष तिवारी जी को बधाई

डाॅ सलमा जमाल जबलपुर

मनोज जी ने यथार्थ को जिया है ।लेखनी के माध्यम से सच से पर्दा हटाया है ।किसी को भी सम्मान से खुशी , ऊर्जा, हौसला और अच्छा करने की ललक जाग उठती है । परन्तु वह खरीदा हुआ न हो । उसमे सोर्स का इस्तेमाल नही हो । जिसे देखकर दूसरे लोग कह उठे कि अमुक इसके योग्य है तब मजा आता है । मनीष भाई को शत् शत् बधाईयाँ । भविष्य की शुभकामनाएं