श्रीमति समीक्षा तैलंग 

(आदरणीय श्रीमति समीक्षा तैलंग जी का e-abhivyakti में स्वागत है। हम पूर्व में आपके व्यंग्य संग्रह “जीभ अनशन पर है” की समीक्षा प्रकाशित कर चुके हैं। आप व्यंग्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। हम भविष्य में आपके उत्कृष्ट साहित्य से अपने पाठकों को रूबरू कराते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य याददाश्त उधारी पर।)

 

व्यंग्य – याददाश्त उधारी पर 

 

स्लो पॉयजन मतलब आज के जीने की खुराक। शर्तिया…। रामबाण…। न मिले तो सांसें उखडऩे लगे। फ़क्र करना होगा कि जमाना बदल चुका है। खुली सांस और शुद्ध जल नाकाफी है। है भी नहीं…। हाशिये पर जीने वाले भी इसकी गिरफ्त से दूर नहीं…। नौजवान और उनकी तोंद भी इसी की शिकार हैं। मानो तोंदियापन फ़ैशन सा हो गया हो। फिर भी चस्का ऐसा कि भले बेरियाट्रिक सर्जरी करानी पड़ जाए लेकिन इसकी लत न छोडेंगे भाई…।

चलो, एक परसेंट छोड़ भी देते हैं तो दुनिया आगे और हम पीछे रह जाएंगे। दुनिया से कदमताल करना है तो आमरण इस जहर के साथ जीना होगा। किसी भीष्म प्रतिज्ञा की तरह। ऐसी प्रतिज्ञाएं अक्सर चीर और हरण जैसे वाकये को होते रहने में सहायक होती हैं। अमरकथाओं में कभी पढ़ते कि फलानी रानी अपने लला की खातिर अपने ही राजा पर स्लो पॉयजन का इस्तेमाल करतीं। गद्दी हथियाने…।

भारत सबसे आगे है विश्व में। कर लो गर्व। लेकिन किस पर करोगे॰॰॰। सेल्फ़ी मोड से मरने वालों की संख्या पर॰॰॰। या उन पर जिनका कैमरा घटना के आगे चलता है। और वे ख़ुद उसके पीछे।

ये हमारी गूगल आंटी नुमा रानी हैं न…। सर्वेसर्वा…। हमारे जीने का तरीका सेट करने वाली…। ओहदे में किसी राजमाता से कम नहीं…। भटकने से बचाती चलती है। सही रास्ता दिखाने वाली…। चुन चुनकर…। कोशिश करती रहती हैं कि भीड़ भाड़ से दूर रहें हम सब…। कहीं फंस न जाएं, पूरा दारोमदार उसके बोलने पर…। मतलब उसकी ज़रा सी चूक पर हम चूके। क्या पता आगे खाई हो। एक खाई से निकलकर दूसरी खाई में गिरे। फिर भी भारत की गलियों का रास्ता न है इसके पास। सिर ऊँचा कर सकते हैं कि हमारे पास पानवाला है।

न बड़े बुजुर्गों की जरूरत। न उनके अनुभवों की…। ऐसा कोई माई का पुत्तर नहीं जो इस रानी का राजा ना हो। भाई, हर किसी को हक है राजसी ठाठबाट का…। मनुष्य की खासियत ही है जो न मिला उसी के पीछे भागना। गूगल रानी मिलने के बाद कहां जरूरत अपनी रानी की। उसमें इतना हुनर की आत्मीय रिश्तों पर क़ब्ज़ा कर रखा है। प्रेम कहानियाँ ख़रीद लीं हैं भाई…। और क्या चाहिए? घर में न राजा बचा, न रानी। एक समय पांडवों को अज्ञातवास के लिए दर दर भटकना पड़ा। पर हम खुशनसीब हैं…। भाग्यशाली हैं…। हम अपने ही घर में अज्ञातवास की तरह रहते।

गूगल रानी धर्मराज युधिष्ठिर के रूप में प्रकट हो जाती। सही गलत के सारे भेद होते इसके पास। कभी वृहन्नला तो कभी नकुल सहदेव। और भीम के रूप में तो अक्सर गदा सिर पर मारती। जरा डांट के, इतना सा उत्तर नहीं आता मूरख। ये रहा तुम्हारे प्रश्न का सही उत्तर।

मतलब मेमोरी कन्ज्यूम करने की जरूरत ही कहाँ  बचती है। हरेक को सांइटिस्ट थोड़े बनना है। हमारा दिमाग किसी लैंडफिल साइट से कम न बचा, भाई। दाएं बाएं की साइटें देख देख के डंपिंग गारबेज बन चुका है। याददाश्त फीकी पड़ जाए तो अब दादी नानी के नुस्खों की भी जरूरत नहीं। कौन खाए बादाम और कौन करे बादाम के तेल से चंपी। इतनी चकल्लस का टेम नयि है सहाब…। बहुत बिजी हैं सब। बिजी विदाउट बिजनेस। लेकिन ऐसा नहीं कह सकते…। रानी ने अपने चारों ओर पूरे विश्व का नेटवर्क जो बनाके रखा है। सर्फिंग करनी पड़ती है। बताओ आखिर, जानकारी हासिल करनी चैइये कि नयी करनी चैइये…?? लेकिन अगले दो मिनट के बाद उस जानकारी की मृत्यु होना भी सुनिश्चित है। क्या करें, याददाश्त भाड़ में भुंज रही हो तो ऐसा होना संभव है।

गूगल रानी का आलम किसी युनीसेक्स सलून की तरह है। कोई लिंगभेद नहीं…। सबके लिए बराबर। वो ऑर्डर देती है और हम सब मानते हैं। जैसे किसी कद्दावर देश का राष्ट्रपति। मतलब पूरी दुनिया मुट्ठी में कर रखी है इस रानी ने…। फिर किस बिनाह पर अमेरिका, चीन या अरब वर्ल्ड शेखी बघार रहे॰॰॰। न शोख, न कमसिन…। फिर भी बस लोग कायल हुए जा रहे इसके। सही को सही के साथ साथ सही को गलत और गलत को सही ठहराने की अभूतपूर्व क्षमता है…। इस पावर के आगे सभी नतमस्तक हैं। तिल का ताड़ और ताड़ से तेल निकलवाने की क्षमता रखती हैं बहनजी….। सारा कंट्रोल उसके हाथ में। और अब हम भिखारी बने फिर रहे हैं। याददाश्त के नाम पर थोड़ी दे दे रे बाबा….।

© श्रीमति समीक्षा तैलंग 

 

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