ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2
श्री विनोद कुमार ‘विक्की’
(श्री विनोद कुमार ‘विक्की’ जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है. श्री विनोद कुमार जी स्वतंत्र युवा लेखक सह व्यंग्यकार हैं. आप व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं. आप कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं. आपकी कृतियां – हास्य व्यंग्य की भेलपूरी (व्यंग्य संग्रह),मूर्खमेव जयते युगे युगे(व्यंग्य संग्रह),सिसकता दर्द (लघुकथा संग्रह) प्रसिद्ध हैं. इस विशेषांक के लिए श्री विनोद कुमार जी के व्यंग्य के लिए हार्दिक आभार.)
☆ व्यंग्य – कहाँ चल दिए बापू ☆
वाक़या इस गांधी जयंती की है। रात्रि स्वप्न में टहलते हुए बापू मिल गए। अरे भाई …. आसाराम बापू नहीं मोहन दास करमचंद बापू। वही 1947 वाला लुक आंखों पर गोल चश्मा,एक धोती पर ढ़का हुआ शरीर, हाथ में लाठी…….हाँ दाएँ-बाएँ कन्याए नजर नहीं आ रही थी।
औपचारिक अभिवादन के बाद सोचा आज बापू का इंटरव्यू ले लूँ यही सोच कर मै उनसे पूछ बैठा-” हैप्पी बर्थडे बापू…. कैसे हो “?
बापू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- “मैं तो ठीक हूँ पर मेरा भारत कैसा है”! उन्होंने क्रास क्वेशचन किया।
भारत बोले तो मनोज कुमार और सात हिन्दुस्तानी अमिताभ ……एक दम मजे में हैं दो साल पहले भारत को और इस बार सात हिन्दुस्तानी को दादा साहब फाल्के भी मिला ……”
“अरे नहीं रे…. मेरी बात को बीच में काटते हुए लाठी टेक कर बापू आगे बोले ये तेरा इंडिया कैसा है”?
“एकदम रापचीक बापू अब तो डिजिटल हो रहा है”। मैने जवाब दिया।
“हाँ दिख रहा है…. मुस्कुराते हुए बोले अरे….मेरे सपनो का भारत रे….” इतना बोल बापू लाठी टिकाकर वहीं बैठ गए।
“अरे बापू आपको तो खुश होना चाहिए आप ने गुलाम भारत को भी देखा और आजाद भारत को भी देखा है” मैने उनका हौसला बढाया।
“सच कह रहे हो बेटा मैं अकेला हूँ जिसने परतंत्र भारत में भारतीयों पर गैर भारतीयों के अत्याचार को देखा और आज स्वतंत्र भारत में तस्वीर/मूर्तियों के माध्यम से भारतीयों पर भारतीयों द्वारा हो रहे अत्याचार को देख रहा हूँ”। इतना कह बापू खामोश हो गए।
“और बताओ बापू तुम्हारे तीन बंदर कहीं नहीं दिखाई दे रहे “! मैने बात आगे बढाते हुए पूछा।
बापू गम्भीरता से हाथों से नाक पर चश्मा टिकाते हुए बोले-” मुझे तो पुरे देश में लोगों की बजाय उसी तीनों बंदर के वंशज नजर आ रहें है बेटा…… बस उद्देश्य बदल गया है उनका।
उनमें से एक बंदर का वंशज जनता का प्रतिनिधि बन गया है जिसे प्रजा का दुख दिखाई नहीं देता और वो जनता के प्रति हो रहे अत्याचार/अन्याय को देखकर आंखें मूंद लेता है….. दूसरे का वंशज प्रशासन बन गया है जो जनता की परेशानी/व्यथा/ तकलीफ सुनने की बजाय कान मूंद लेता है…..तीसरे का वंशज स्वयं आम जनता है जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की बजाय खामोशी से मुंह बंद कर लेता है और चुपचाप सब सह लेता है …….मेरे विचार और मूल्य रहें कहाँ मेरे भारत में”।
बापू की गंभीरता को देखते हुए मै बोला- “ऐसा नहीं है बापू आप हिन्दुस्तान में हर जगह हो थाना से लेकर सभी सरकारी कार्यालय में दीवारों पर आप फिक्स हो। प्रायः हर चौक चौराहे पर सर्दी, गर्मी, बरसात में आप खड़े हो और अपने भारत को देख रहे हो। जितनी सेवा आपने अपने जीवनकाल में इस देश की नहीं कि होगी उतनी तो आपके जाने के बाद आपकी तस्वीर, मूर्ति आदि 365 दिन कर रहे है”।
“फिर भी दुख है आज के नागरिक मुझे नहीं जान रहे”! दर्द छिपाते हुए बापू बोले।
आहत बापू को ढांढस बंधाते हुए मै बोला-“बापू लगता है आपको किसी ने रांग इन्फोर्मेशन दे दिया है पूरे देश में आप ही आप हो बापू गली-मोहल्ले,स ड़क से लेकर शहर तक के नाम पर आपका ही कॉपीराइट है। आपके नाम पर सफाई स्वच्छता अभियान चल रहा है ये और बात है एक देश में सफाई करके विदेश भ्रमण को जाते है जबकि दूसरा देश की सफाई कर विदेश पलायन कर जाता है।
आप तो हर जगह छाए हो और तो और दस से दो हजार के नोट पर भी आपका ही पासपोर्ट साइज फोटो छपा हुआ है।
बच्चे भले अपने बाप का नाम नहीं जानते हो लेकिन अक्खा कंट्री के बाप के बारे में जरूर जानते है”।
” फोटो से याद आया वो नोट के फोटो पर भी राजनीति होने लगी है भाई….. उसे भी हटाकर मेरे जूनियर भगत, सुभाष एवं चंद्रशेखर की फोटो चिपकाने की बात हो रही है”। बापू आगे बोले।
“अरे इसमें टेंशन क्या है बापू वो लोग भी तो आजादी को लेकर…… शहीद भी हुए…. आजाद भारत की सुबह-शाम नहीं देख पाए आने दो उनकी भी तस्वीरें नोट पर। वैसे भी आप तो बड़े महान दयालू और त्यागी हो, ये तो महज नोट पर फोटो वाली ही बात है”।
मेरे इस बात पर बापू फूर्ति से उठते हुए बोले-“बेटा तुम मेरी ले रहो हो…..”
मैने बिना पूरी बात सुने ही कहा -“सही समझे बापू मै आपका इंटरव्यू ही ले रहा हूँ।
“लेकिन बेटा इन दिनों बड़ी असहिष्णुता है देश में एक संप्रदाय दूसरे का जान का दुश्मन बना हुआ है राजनेता इसे रोकने की बजाय और बढ़ावा देते है ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सनमति दे भगवान’ ।वे निराश भाव से आगे बोले।
मैने उनको टोका-“ये मै नहीं मानने वाला बापू ये सांप्रदायिक भेदभाव गुलाम भारत से ही है”।
“नहीं बेटा हमारे समय तो हिंसा रक्तपात केवल अंग्रेज ही करते थे राजनेता नहीं सभी भारतीय प्रेम से रहते थे बिना भेदभाव के”। बापू ओवर कांफिडेंस में बोले।
“तो1946 का प्रत्यक्ष भी अंग्रेजों की ही देन थी बापू”!
मेरे इस सवाल पर बापू धीरे से बोले-“अच्छा भाई अब चलता हूँ “।
” अरे रूको बापू कहाँ चल दिए …. अरे थोड़ा रूको” चिल्लाते चिल्लाते मेरी नींद खुल गई। सपना फूर्र हो गया और बापू जयंती मनाने सरकारी कार्यालय को निकल लिए।
© विनोद कुमार ‘विक्की’
द्वारा स्व. श्री ओमप्रकाश गुप्ता, सुमित किराना स्टोर
ग्रा+ पो.-महेशखूंट बाजार जिला: खगड़िया 851213(बिहार) मो 9113473167