शिक्षक दिवस विशेष
श्रीमति विशाखा मुलमुले
(शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की कविता आशीष. )
☆ आशीष ☆
आकाश गरज रहा है
बरस रहा है
रूद्र हो रहा है
साथ ही प्रशस्त कर रहा है जीवन
एक शिक्षक की तरह ….
धरा,जन ,वृक्ष ,नदी सभी
संग्रहित कर रहे है
इस बौछार को
हो नतमस्तक
एक शिष्य की तरह …..
आकाश
धो रहा है मैल को
जो परत दर परत
जमती जा रही थी
अस्तित्व पर शिष्य के
कभी सहलाकर
कभी झकझोड़कर
ताकि ,
निर्मल तन पा शिष्य
विकसित हो सके
उसका चैतन्य भी छा सके
इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में
और शिष्य भी सृजक बने
इस नवयुग के निर्माण में
© विशाखा मुलमुले
पुणे, महाराष्ट्र