☆ हिन्दी साहित्य – संवाद ☆ अविराम 1111 – संजय दृष्टि – पाठकों की प्रतिक्रियाएं – प्रतिसाद … ☆
श्री संजय भारद्वाज जी के लेखन-प्रकाशन के 1111 दिन पूरे होने पर पाठकों की प्रतिनिधि प्रतिक्रियाएँ-
[1] सुश्री वीनु जमुआर
बचपन के दिनों में, प्रहर की रात्रिबेला में, सोने से पूर्व प्रतिदिन दादी-नानी द्वारा सुनाई गयी कहानियाँ, लोककथाएँ, लोकगीत इत्यादि ज्ञान तथा विवेक सिंचित व्यक्तित्व को गढ़ने का मार्ग होती थीं।
सर्वविदित है कि प्रतिदिन का प्रयास पत्थर पर भी लकीरें उकेरता है। निरंतरता साँस की तो जीवित रहने का अहसास, संवेदना सृजन की तो मष्तिष्क के चैतन्य रहने का विश्वास!
समय बदला, गति बदली, संयुक्त का एकल में परिवर्तन हमने देखा। ऐसे समय में सृजनकारों की जिम्मेदारी बढ़ी।
आइए, आज बात करें एक ऐसे युवा मननशील, मनीषी रचनाकार की जो न केवल अनुभूतियों की बात कहता है बल्कि इन्हें अभिव्यक्त करने की भाषा पर भी अपने विचार व्यक्त करता है। कहता है, ‘अपनी भाषा में अभिव्यक्त होना अपने अस्तित्व को चैतन्य रखना है।’
अध्यात्म को देह, मन और प्राण के चारों ओर का दर्शन मानने वाला, सकारात्मक सोच से लबालब भरा हुआ, लक्ष्य सिद्ध होने तक अर्जुन-सी दृष्टि रखने वाला, साहित्य की विविध विधाओं के पृष्ठों पर अपनी कलम से अनमोल जीवन-सूत्रों पर विचार-विमर्श की थाली परोसता है तो राष्ट्रकवि दिनकर जी की पंक्तियों में हृदय कह उठता है – ‘कलम आज उनकी जय बोल।’
सत्संग की वाणी हो, या शिव का ओंकारा- श्रव्य, दृश्य, कहन, लेखन, रंगमंच से जुड़ाव, मनुष्य जीवन के जटिल राग को आसान बनाने में सहायक होने की प्रतीति कराते हैं। प्रकृति के प्रति प्रेम, पर्यावरण के प्रति चिंतित, पंछियों की उड़ान, गौरैया पर कार्यक्रम, साहित्यकारों का सम्मान, संजय उवाच के माध्यम से भारतीय दर्शन, यहाँ की अनमोल संस्कृति, परंपरा को जीवित रखने का प्रयास करता सृजन पथ का अथक पथिक!
‘साहित्यकार के मन का दर्पण होता है उसका लेखन, पाठक की दृष्टि उसे विस्तार देती है, कालजयी बनाती है’, कहने वाले माँ वागेश्वरी के वरद पुत्रों में से एक विशेष- श्री संजय भारद्वाज जी को अंतस से शुभकामनाएँ!
1111 की निरंतरता भागीरथी की भाँति बनी रहे। धारा संग आदरणीय श्री हेमंत बावनकर जी का साथ बना रहे। रचनाकार एवं प्रकाशक का यह स्तुत्य प्रयास आलोकित होता रहे। मनः पूर्वक एक पाठिका का आभार, सदिच्छाएँ।
– वीनु जमुआर, पुणे
[2] सौ.शशिकला सरगर
आदरणीय संजय भारद्वाज सर जी की लेखन यात्रा को 10 अगस्त 2022 के दिन 1111 दिन पूरे हो रहे हैं। गौरवान्वित करनेवाले इस रचना कार्य के लिए हार्दिक अभिनंदन।
इस आनंद यात्रा का साक्षी बनाने का परम सौभाग्य मुझे भी मिला। सर, लेखन मानो आपके जीवन की धड़कन है । एक छोटा-सा शब्द, पंक्ति ,सुभाषित को लेकर आप एक गहरा तत्वज्ञान प्रस्तुत करते हैं। मस्तिष्क में रोज नया विचार डालकर आप पाठकों को अंतर्मुख होने के लिए बाध्य करते हैं, ‘व्यष्टि से समष्टि’ तक ले जाते हैं । आपकी लेखनी पाठकों के मन में रोज नई ऊर्जा, नई चेतना को जगाती है। मानव की व्यथा, उपेक्षितों के लिए आस्था, मानव की प्रकृति के प्रति अनास्था, ये आपके लेखन के विषय रहे हैं।संवेदनशीलता, मानवीयता, चिंतनशीलता को अभिव्यक्त करनेवाले विचार ,आपकी संस्कृत प्रचुर शैली पाठकों को अभिभूत करती है।
आपकी यह लेखन यात्रा निरंतर चलती रहे , यही शुभकामना है।
– सौ.शशिकला सरगर, कोल्हापुर
[3] सुश्री ऋता सिंह
1111 ‘संजय उवाच’ और ‘संजय दृष्टि’ के लेखन और प्रकाशन हेतु संजय भारद्वाज जी को हार्दिक बधाइयाँ।
विभिन्न विषय ,जीवन मूल्य और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा व मार्गदर्शन निरंतर 1111 दिन बनाए रखना न केवल एक निराली सोच है बल्कि यह उच्च स्तरीय तपस्या है, साधना है।
अपने अंतस की यात्रा, संसार के बीच बैठकर एकाग्रचित्त से करते रहना न केवल अपने धैर्य को जानना है बल्कि स्वयं की क्षमता, ज्ञान की ऊँचाई की परिधि को जानना भी है। साथ ही सरल बोधगम्य शब्दों में अभिव्यक्ति इसकी सर्वोच्च पराकाष्ठा है।
हम सभी पाठक भाग्यशाली हैं जो निरंतर संजय जी के लेखन के प्रसाद का आनंद पिछले 1111 दिनों से प्राप्त करते रहे, मार्गदर्शन का लाभ उठाते रहे। ईश्वर से प्रार्थना है कि रचनाकार आयुष्मान हो तथा समाज के मानसिक विकास के उत्थान हेतु इस क्षेत्र में निरंतर कार्यरत रहे।
– ऋता सिंह, पुणे
[4] श्री कृष्णमोहन श्रीवास्तव
संजय भारद्वाज जी सरल, सहज और गंभीर स्वभाव के व्यक्ति हैं और उनका यह चरित्र उनके लेखन में भी झलकता है। संजय जी के लेखन और कविताओं में जहाँ जनमानस की आम जिंदगी और उसकी विषमताएँ, हिंदुस्तान की धार्मिक परम्परा, रीति रिवाज और उसकी विसंगतियां आदि प्रतिबिंबित होती हैं, वहीं उनमें जीवन का पाठ / फलसफा / दर्शन भी झलकता है। यह कहा जाता है कि पढ़ना, घड़े का भरना और लिखना उसके छलकने के समान होता है। लेकिन मेरा यह मानना है कि संजय जी का लेखन मूलतः सघन अनुभूतियों / चेतना का व्योम से सीधे ‘डाउनलोड’ होने की प्रक्रिया के लगभग जैसा है! इसके साथ ही चूंकि वे अपने लेखन को रोजमर्रा की जिंदगी में जीते भी हैं, अतः इनकी रचनाओं को मौलिक, प्रामाणिक और प्रासंगिक तो होना ही है। संजय भारद्वाज जी को ई- अभिव्यक्ति के 1111 दिन पूरे होने के अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ एवं साधुवाद। आशा है कि ई-अभिव्यक्ति की यह धारा यूँ ही अविरल बहती रहेगी।
– कृष्णमोहन श्रीवास्तव, पुणे
[5] सुश्री अमिता अंबष्ट
विद्यार्थी जीवन में मैंने पढ़ा था कि रीतिकाल के प्रतिष्ठित कवि ‘बिहारी’ के दोहे ‘गागर में सागर ‘हैं। लंबे समय से मैं श्री संजय भारद्वाज जी की रचनाओं का रसपान करती आ रही हूँ और उनका लेखन मुझे गागर में सागर-सा ही प्रतीत होता है।यथार्थ की धरा पर उपजी अनगिन भावों की त्रिपथगा, निरंतर प्रवहमान।
मैं अभिभूत हूँ, सृजन के नित्य नए आयाम रचने वाले रचनाकार की रचनाओं को पढ़कर। फाल्गुन के बासंती रंगों से सजी उनकी हर विधा में लिखी गई रचनाएँ मुझे मुग्ध करती हैं।
संजय भारद्वाज जी की रचनाएँ छोटी- छोटी चीजों पर पैनी दृष्टि, उनके भावों का प्रतिबिंब हैं, मन की भीतरी तहों को स्पर्श करती हुई, कभी कविताओं के रूप में अपनी इंद्रधनुषी छटा बिखेरते हुए तो कभी लघुकथाओं और आलेखों के माध्यम से आम मानव जीवन को आम से खास बनाते सरल-सहज शब्दों में सहेजती हुई। उनकी बहुआयामी प्रतिभा होली के विविध रंगों की भाँति स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करवाती दिखती है, एकदम सजीव, अपने रंगों द्वारा समाज को व्यापक संदेश देती हुईं।
संजय जी को ई-अभिव्यक्ति के साथ 1111 पूरे करने की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। आपकी लेखनी की प्रखरता से हम सब सदैव समृद्ध होते रहें, यही आकांक्षा है।
– अमिता अंबष्ट, रांची, (झारखंड)
[6] सुश्री कंचन त्रिपाठी
चित्रकार, शिल्पकार, शब्दकार कैसे व्यक्त करुँ एक शब्द में। अपने शब्दों में रंग भर कर पाठको के मानसपटल के कैनवास पर सजाने वाला चित्रकार या बिना छेनी की चोट, बिना हथौड़ी की मार, बिना किसी औजार के शब्दो के सामर्थ्य को दर्शाते हुए शब्दों से अपने पाठकों के हृदयपटल पर न जाने कितने सपने गढ़ देने वाला कुशल शिल्पकार!
जीवन की विसंगतियो को, काव्य से गद्य तक की यात्रा को एकरसता में पिरोने की दक्षता, शब्दों में अर्थ ढूँढ़ते हुए सामंजस्य और हल का पता देने वाले श्री संजय भारद्वाज जी एक उत्तम कोटि के साहित्य-शिल्पी हैं I ईश्वर से प्रार्थना है, आपका साहित्य सृजन हिन्दी साहित्य को समृद्ध करता रहे I
– कंचन त्रिपाठी, पुणे
[7] सुश्री रेखा दिवाकर सिंह
संजय भारद्वाज जी के लेखन में सम-सामयिकता के साथ सहज अभिव्यक्ति व प्रेरणा का अभूतपूर्व संगम देखने को मिलता है। बेहद सुदृढ़ लेखन, विचारों के आदान प्रदान में सहजता, स्वाभाविकता तथा सामान्यता का-सा एहसास होता है। सामान्य व्यक्ति भी उनके लेखन से जुड़ाव अनुभव करता है। उनकी अभिव्यक्ति समाज के हर वर्ग को उजागर करती है। बेहतरीन शब्द संपदा, सुगठित लेखन-शैली एवं भाषा का सुरुचिपूर्ण प्रवाह उनके लेखन में विशिष्ट है। सामाजिक चेतना का ब्यौरेवार विवरण लेखन को और अधिक सुस्पष्ट एवं सहज बनाता है। उनकी दृष्टि शोधपरक है। उनका वस्तुओं को देखने का नजरिया आम लोगों से बिल्कुल ही अलग है। संजय जी एक साधारण-सी बात को अपने गहन विश्लेषण से विशिष्ट बना देते हैं। आपके लेखन में गंभीरता के साथ-साथ हास्य विनोद की झलक भी यत्र-तत्र दिख ही जाती है। आपकी रचनाएँ हमें सोचने को मजबूर कर देती हैं कि जिन बातों को हम इतना सरल समझते हैं, वे वास्तव में कितनी गहनता धारण किए हैं। संजय जी के बारे में कुछ भी कहना गागर में सागर भरना जैसा है। कहने को इतना कुछ है कि कुछ न कुछ छूट ही जाता है। शेष फिर..।
– रेखा दिवाकर सिंह, संयुक्त निदेशक (राभा.), रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, पुणे
[8] डॉ रमेश गुप्त ‘मिलन’
संजय भारद्वाज जी सम-सामयिक हिंदी साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर हैं। आप कवि, लेखक, नाटककार, रंगकर्मी,समीक्षक, बहुआयामी व्यक्तित्व के साहित्यकार हैं। आपकी ई-अभिव्यक्ति की रचनाओं की यात्रा के हम साक्षी रहे हैं। आपकी रचनाएँ ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायक, सार्थक एवं वसुधैव कुटुंबकम् की भावनाओं से ओतप्रोत हैं।
अध्यात्म से संबंधित रचनाएँ आत्मानुभूति से परिपूर्ण हैं जो संग्रहणीय हैं और साहित्य की अमर धरोहर हैं।
ई अभिव्यक्ति के विशेष परिशिष्ट के प्रकाशन के अवसर पर संजय भारद्वाज जी को हार्दिक बधाई -शुभकामनाएँ।
– डॉ रमेश गुप्त ‘मिलन’, पुणे
[9] सुश्री अलका अग्रवाल
यह हम सब के लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि आदरणीय संजय जी जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं तथा लेखक, कवि, प्रकाशक, नाटककार, संचालक, वार्ताकार, निष्णात वक्ता जैसी अनेक भूमिकाओं को सफलतापूर्वक निभाते हैं, उनके 10 अगस्त 2022 को 1111 दिन दैनिक लेखन और दैनिक प्रकाशन के पूर्ण हो जाएँगे। उनको आत्मिक बधाई व अभिनंदन। संजय जी का लेखन इतना उत्कृष्ट है कि हम सब को चिंतन, मनन व मंथन करने पर विवश करता है। कभी-कभी तो आप बड़ी बात को भी चंद शब्दों में इतनी सरलता से कह जाते हैं कि गागर में सागर वाली उक्ति चरितार्थ हो जाती है। आपका लेखन रोज़मर्रा के व्यवहार या क्रिया-कलाप को लेकर शुरू होता है और अंत में बहुत गूढ़ बात कह जाते हैं। आप हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं तथा हम सबके गुरु हैं। आपकी लेखनी नित यूँ ही चलती रहे, हमें नित नवीन लेखन पढ़ने को मिलते रहें। माँ सरस्वती का वरद हस्त आप पर सदैव बना रहे, यही कामना है।
– अलका अग्रवाल, पुणे
[10] सुश्री विनीता सिन्हा
विगत दो-ढाई वर्षों से जब से संजय जी की रचनाओं से रुबरू होने का मौका मिला है, उनसे एक अलग ही-सा अपनेपन का एहसास होता महसूस करती हूँ। तक़रीबन हर एक रचना को पढ़ने के बाद लगता है कि यही तो मैं सोच रही थी, आपने तो मेरे मन की बातों को शब्दों का रूप दे दिया और इसलिए मैंने पहले भी उनको लिखा था कि ‘लेखक की लेखनी जब पाठक के मन को कैद कर ले तो एक अलग ही तरह की आनन्द की अनुभूति होती है और यह हर रचनाकार के लिए संभव भी तो नहीं।’
कभी-कभी कुछ बहुत ही गहरी, बात छोटी सी लकीर खींच कह जाते हैं आप, तब सोचने पर खुद को विवश पाती हूँ। कुछ वैसी ही स्थिति आपकी रचना ‘नींद’ पढ़ कर हुई । हरेक रचना बहुत सोचने- मनन करने के बाद लिखी गई सी प्रतीत होती है। कहीं आध्यात्मिक तो कहीं सामाजिक, अलग- अलग विधाओं से जुड़ी रचनाएँ!
जीवन दर्शन से भरपूर आपकी और भी ढेरों रचनाएँ पढ़ डाली मैंने। जो भी मिला, पढ़ा। अब हाल यह है कि सुबह नींद खुलते ही पहले मोबाईल पर हाथ जाता है कि आज क्या नया लिखा है आपने? धुँधली आँखो से पहले वह पढ़ लेती हूँ, बाकी सारी चीजें बाद में।
मेरे पास शब्दों के पुष्पगुच्छ नही हैं संजय जी, जो आपके लेखन पर कुछ गहराई से लिख भेजूँ । बस जो महसूस करती हूँ, आपकी रचनाओं से जो गहन चिंतन करने की लालसा पाती हूँ, वही लिख रही हूँ ।
आप नित नये आयाम तय करते जाएँ, यही ईश्वर से प्रार्थना है…और हमें एक से एक आपकी गढ़ी रचनाओं से रूबरू होने का मौका मिलता रहे।
– विनीता सिन्हा, मुंबई
[11] सुश्री स्वरांगी साने
दैनिक लेखन, दैनिक प्रकाशन की यात्रा के 1111 दिन पूरे कर लेना, अपने आपमें बहुत बड़ी बात है। यह बात और बड़ी और महत्वपूर्ण और अधिक उल्लेखनीय इसलिए हो जाती है कि यह केवल हर दिन का लेखन नहीं है, हर दिन का महत्वपूर्ण लेखन है। हर दिन पाठकों को मनन-चिंतन करने के लिए कोई सूत्र देना, आशावाद का संचार करना और सबको ‘संजय’ (जी की) दृष्टि प्रदान करना जिम्मेदारी वाला कार्य है। इस जिम्मेदारी को जवाबदारी से संभालने का माद्दा जिसके पास होता है वही इतनी लंबी अर्थपूर्ण यात्रा कर सकता है। यह यात्रा अनंत क्षितिज का विस्तार पाए।
– स्वरांगी साने, पुणे
[12] श्री दिलीप धोंडे
ईश्वर ने आदरणीय संजय जी को शब्द प्रतिभा की सौगात देकर आपके द्वारा दैनिक लेखन के माध्यम से हम पाठकों को नित्य नया उपहार भेजा है।
आपकी अभिव्यक्ति हमें उस विषयवस्तु के अलग पहलुओं से परिचित करवाती है। अनेक बार तो नित्य आसपास घटित होने वाली घटनाओं पर आपका सटीक और समर्थक विश्लेषण मन को छू लेता है।
आपका लेखन सीधे आँखों से मन में उतर जाता है। आपके लेखन में एक संवेदनशील लेखक हमेशा दिखाई देता है।
माँ सरस्वती की उपासना आपके कर कमलों द्वारा इसी तरह निरंतर होती रहे और हम प्रसाद स्वरूप अभिव्यक्ति द्वारा लाभान्वित होते रहें।
दैनिक लेखन और दैनिक प्रकाशन की आपकी यात्रा के 1111 दिन पूर्ण होने पर हार्दिक शुभेच्छा।
– श्री दिलीप धोंडे, पुणे
[13] डॉ. लतिका जाधव
संजय जी का अभिनंदन। ई-अभिव्यक्ति में अपनी कलम से समाज, अध्यात्म, विज्ञान, साहित्य और पर्यावरण जैसे अनेक जीवन विषयों से जुड़े मुद्दों पर लिखना आपकी विशेषता रही है। आपकी कविताओं में विविधता है। जीत के लिए संघर्ष, परिश्रम और अनुशासन का संदेश युवाओं को प्रेरणा देता है।
जीवन मूल्यों पर सकारात्मक चिंतन, समस्याओं पर चिंता, अथक प्रयास से मिलने वाले यश का गुणगान जैसे नीति तत्व आपके लेखन का अटूट हिस्सा हैं।
आपकी हिंदी भाषा प्रवाही है। संस्कृत प्रचुर हिंदी आपकी विशेषता दिखाई देती है। फिर भी रचनाओं में उभरती अनुभूतियों से यह कविताएँ पाठकों को सरलता से प्रभावित करती हैं। हिंदी भाषा का स्तर हमेशा उत्तमता से परिपूर्ण रहे, इस बात पर आप काफी गंभीरतापूर्वक लेखन करते हैं, जो प्रशंसनीय लगता है।
– डॉ. लतिका जाधव, पुणे
[14] श्री शिवप्रकाश ब्रिजमोहनजी गौतम
प्रिय कल्याण मित्र संजय भारद्वाज जी को सर्वप्रथम 1111 दिन के अविरत सृजन के पूर्णत्व की हृदयतल से बधाई।
प्रतिदिन कुछ नया लिखना यह असाधारण कार्य है। आपका लेखन उत्तम मार्गदर्शक होता है। अध्यात्म को सुगमता से समझाता एवं संग्रहित करने योग्य आपका लेखन रहा है।
आपका सृजन, मनन करने योग्य एवं हृदयस्पर्शी होता हैं। माँ शारदा की असीम अनुकंपा आप पर बरस रही है। आपके बहुमूल्य सृजन में से कुछ मैंने भी सहेज रखा है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इससे लाभान्वित हो। सीमित शब्दों में आपके लेखन के प्रति कुछ भाव व्यक्त कर पाना असंभव है। आपके अविरत सृजन को नमन।
– शिवप्रकाश ब्रिजमोहनजी गौतम, दिग्रस, यवतमाल
[15] सुश्री रेखा प्रमोद सिंह
हिन्दी साहित्य जगत में आदरणीय संजय भारद्वाज जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। इनके रचना संसार को शब्दों में बांधना मेरे लिए संभव नहीं है। सच में आप कलम के जादूगर हैं। आपका गहन चिंतन-मनन और विशेषकर ‘संजय-उवाच’ लोगो की सोई चेतना को जाग्रत कर रहा है। आपकी लेखनी एक ओर अध्यात्म और जीवन-दर्शन की राह दिखलाती है तो दूसरी ओर व्यवस्था पर भी प्रहार करती है। आप की दृष्टि में नारी का स्थान बहुत सम्मानीय है, धरती माँ की तरह।
आपकी क्रौंच कविताएँ हों या अन्य, आपके प्रकृति- प्रेम को दर्शाती हैं। आपकी कविताओं जैसे ‘खोया-पाया’ और ‘है और था’ में गीता की वाणी जैसे जीवन का गूढ़ रहस्य छुपा है । खोया-पाया’ का एक अंश है- रीता आया था/ सो कुछ नहीं खोया/ सृष्टि संपन्न लौट रहा हूँ/ बस, पाया ही पाया।’ अद्भुत, निशब्द करती कविता। एक सकारात्मक सोच लिए। जीवन को नयी दृष्टि से देखना, बहुत खूब! इसी तरह आपकी लघुकथाएँ हृदयतल को छूती हैं। आपका लेखन, युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन कर रहा है। ‘
दैनिक लेखन के 1111 दिन पूरे होना, आपकी कर्मठता और सृजनशीलता को दर्शाता है। आपने असंभव को संभव कर दिया। कोटि-कोटि नमन।
– रेखा प्रमोद सिंह, पुणे
[16] सुश्री माया मीरपुरी
प्रतिदिन अंतरात्मा की कोख से सृजित होती हैं रचनाकार आदरणीय संजय भारद्वाज की अद्भुत रचनाएँ। जिन्हें संबल प्राप्त होता है उनकी अपनी जीवन संगिनी आदरणीया सुधा जी से। रोज़ आलोकित होता है ई-पटल सारगर्भित रचना-संपदा से। भाग्यशाली हैं हम जो 19 खंडों में ‘राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका’ नामक लेख पढ़ने को मिला। रचनाकार की जान उसकी लेखनी है। आपकी मेहनत, कर्मनिष्ठा का प्रतिफल है।
अध्ययन और अध्यवसाय की गहनशीलता, आत्मीयता, सकारात्मक सोच, ज्ञान-विज्ञान की नयी तकनीकी प्रयोगशीलता, अनुशासनबद्धता, कथनी-करनी की प्रतिबद्धता, संचालन सूत्रीय सक्षमता, प्रामाणिकता, शब्द-चयन क्षमता, देश को सर्वोपरि मानने की सद्भावना, सृष्टि के कम -कण में सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् की प्रचीति रहस्य है इस सफल सक्रियता का।
श्रवण, लेखन, वाचन, रंगमंच, सत्संग, अनेक ई-गोष्ठियों का प्रस्तुतीकरण, स्नेह सम्मेलनों, उत्सवों विशेषकर वार्षिकोत्सव का आयोजन, वरिष्ठ नागरिकों के लिए बने ‘जाणीव आश्रम’ के प्रति समर्पण, वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम, सुधार गृह , मूकबधिर संस्थाओं में जाकर यथाशक्ति योगदान प्रदानीकरण, साथ ही क्षितिज प्रकाशन का स्तरीय प्रकाशन-कर्म स्तुत्य है।
लेखन-प्रकाशन के 1111 दिन पूरे होने पर कृतज्ञता-अभिव्यक्त करते हुए अशेष मंगलकामनाएँ।
– माया मीरपुरी, पुणे
[17] सुश्री कुसुम गोकर्ण
संजय भारद्वाज के लेख अच्छे मार्गदर्शक होते हैं।
– कुसुम गोकर्ण, पुणे
[18] सुश्री नीलिमा वैद्य
संजय जी का दैनिक लेखन पाठकों को सक्रियता और ऊर्जा प्रदान करता है। समाज का गहरा सच उनके लेखन में दर्पण की तरह प्रतिबिंबित होता है। कोरोना काल मे जब सर्वत्र निराशा और आतंक का माहौल बना था, मौत का तांडव मचा था, तब उनके लेखन से आशा की किरणें मिलती रहीं, संकट से लड़ने का हौसला मिलता रहा।ज्ञानदा ग्रुप पर उनका लेखन पढ़ने के लिए प्रतिदिन की सुबह का इंतज़ार रहता है।
आजकल कठिन कविताएँ लिखने का दौर चल पड़ा है। पाठको की वैचारिकता और सहनशीलता की परीक्षा ही ली जाती है। यही कारण है कि संजय जी की सहज और सरल भाषा मे लिखी कविताएँ अधिक प्रभावशाली जान पड़ती हैं। माँ सरस्वती की संजय जी पर अबाधित कृपा बनी रहे और वे हम सबकी ज्ञानतृषा को तृप्त करते रहें।
– नीलिमा वैद्य, पुणे
[19] सुश्री पूर्णिमा पांडेय
वेदना का शब्दांकन नहीं होता, एहसासों का चित्रांकन नहीं होता लेकिन संजय जी की कलम अपनी अनुभूतियों के माध्यम से इन सभी को हमारे सामने ऐसे प्रस्तुत करती है कि हम निशब्द हो जाते हैं। संजय जी के विचार- शब्दार्थ, भावार्थ और यथार्थ तक पहुँचने का सशक्त माध्यम हैं।
मनुष्य को ऊर्जावान रखने के लिए प्रेम,अपनत्व और संवेदनशीलता के स्नेह की आवश्यकता होती है । संजय भारद्वाज जी गागर में सागर भरने वाले व्यक्तित्व हैं । लेखन में सातत्य या निरंतरता हो तो दिन-ब-दिन लेखन में निखार आते जाता है और यही सत्य संजय भारद्वाज जी के साथ शत- प्रतिशत लागू होता है। संजय जी जिस काम का बीड़ा उठा लेते हैं, फिर उसमें पीछे नहीं हटते। फिर चाहे वो संस्था चलाने का काम हो, चाहे कलम चलाने का। पराई पीर में समरस हो जानेवाला संवेदनशील मन, आसपास घटित होती घटनाओं को विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखने वाली सोच और शब्दों पर अपना प्रभुत्व संजय जी की लेखनी की विशेषता है।
आदमी की आँख का
जब मर जाता है पानी,
खतरे का निशान
पार कर जाता है,
आदमी की आँख में
जब भर आता है पानी,
खतरे के निशान से
उतर जाता है पानी।
मेरे मन के बहुत करीब है ये रचना। ऐसी न जाने कितनी रचनाएँ, संजय जी की लेखनी से अवतरित हुई हैं। इन रचनाओं में जीवन की वेदना है , संवेदना है, धड़कता हुआ युगबोध है, ऊँचाई है, गहराई है, विस्तार है। ये रचनाएँ अपने आप में दो-तीन-चार, न जाने कितने आयाम समेटे हुए हैं।
आपकी लेखन यात्रा अनवरत सफलतापूर्वक चलती रहे और हम सब उत्तरोत्तर श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर रचनाओं का स्वाद लेते हुए, कुछ सार्थक ग्रहण करते करते अपना जीवन भी सँवारने का प्रयास करते रहें।
– पूर्णिमा पांडेय, नवी मुंबई