प्रो. नव संगीत सिंह

☆ संस्मरण ☆ सुरजीत पातर और मैं ☆ प्रो. नव संगीत सिंह ☆

यह बात करीब चार दशक पुरानी है — 1978-79 की। उस समय मैं पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में कैलिग्राफिस्ट (1977-86) के तौर पर कार्यरत था। कैलिग्राफिस्ट, यानी ख़ुशनवीस, एक अच्छा सुलेखक। कैलिग्राफिस्ट को कहीं-कहीं कैलिग्राफर भी कहा जाता है। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से पहले मैं गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में बतौर एक सुलेखक (1974-77) रह चुका हूं।

पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में डॉ. जोध सिंह सबसे पहले उप-कुलपति (1962-66) थे। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में मेरी सर्विस के दौरान, तीन कुलपति विश्वविद्यालय आये। जिनमें से डाॅ. अमरीक सिंह को बहुत सख्त और अनुशासित वीसी माना जाता था। प्रोफेसर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, मैं पाँच उप-कुलपतियों से मिला — डॉ. जोगिंदर सिंह पुआर, डॉ. जसबीर सिंह आहलूवालिया, श्री स्वर्ण सिंह बोपाराय, डाॅ. जसपाल सिंह और डॉ. बी.एस. घुम्मण। जिस समय मेरी नियुक्ति हुई; डॉ पुआर वीसी थे। डा. आहलूवालिया के समय हमारा कॉलेज पंजाबी विश्वविद्यालय का पहला कान्सटिचुऐंट कॉलेज बना। श्री बोपाराय के समय में मुझे चयन ग्रेड व्याख्याता के रूप में पदोन्नत किया गया था; डॉ जसपाल सिंह के समय मैं एसोसिएट प्रोफेसर बन गया और डाॅ. जब घुम्मण पहली बार गुरु काशी कॉलेज आये तो मैं वाइस प्रिंसिपल के पद पर था और मैंने ही उनका स्वागत किया था, क्योंकि तब कॉलेज प्रिंसिपल छुट्टी पर थे।

जिस समय की यह बात है, उन दिनों गैर-शिक्षण कर्मचारी संघ के अध्यक्ष के रूप में हरनाम सिंह और कौर सिंह सेखों के बीच कश्मकश चल रही थी और वे दोनों अपने-अपने समय के कर्मचारी यूनियन के नेता थे। अब ये दोनों इस दुनिया में नहीं हैं।

पहली बार मुझे पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के कर्मचारियों द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम में भाग लेना था और मेरी पहली पसंद कविता थी। तब मैं स्वयं कविता नहीं लिखता था। मुझे अन्य कवियों की कविताएँ पढ़ना/याद करना और उन्हें कहीं सुनाना पसंद था। मैं पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला की विशाल लाइब्रेरी में गया, जहां पहली नजर में ही ‘कोलाज किताब’ और इसके खूबसूरत नाम ने मुझे आकर्षित कर लिया। मुझे पता चला कि यह 1973 में प्रकाशित तीन कवियों, परमिंद्रजीत (1.1.1946-23.3.2015) जोगिंदर कैरों (जन्म 12.4.1941) और सुरजीत पातर (14.1.1945-11.5.2024) की सांझी पुस्तक है।

और यह भी कि यह तीनों लेखकों की पहली-पहली किताब है। इन लेखकों ने इस पुस्तक के बाद ही अपनी-अपनी अन्य पुस्तकें लिखीं। (यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पातर ने डॉ. जोगिंदर कैरों के मार्गदर्शन में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी।) इस किताब में से जिस कविता ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह थी सुरजीत पातर की कविता ‘हुण घरां नूं पतरणा…’। मैं किताब घर ले आया, एक कागज पर कविता लिखी और फिर उसे याद कर लिया। मैं इसे एक सप्ताह तक दोहराता रहा, कई बार विशेष संकेतों और भाव-भंगिमाओं के साथ इसे पढ़ा और जब मुझे यकीन हो गया कि मैं यही कविता सुनाऊंगा, तो मैंने इस कार्यक्रम में अपना नाम लिखवा दिया।

उस समय डाॅ. अमरीक सिंह विश्वविद्यालय के उप-कुलपति थे। पहले दिन कर्मचारियों की खेल प्रतियोगिताएं थीं, जिसमें मेरी कोई रुचि नहीं थी। दूसरे दिन सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रतियोगिता थी, जो गुरु तेग बहादुर हॉल में हुईं। ये प्रतियोगिताएं शाम करीब पांच बजे शुरू हुईं और रात नौ बजे तक चलीं। कविता के अलावा गीत-संगीत और गिद्धा-भांगड़ा की भी प्रस्तुति हुई। इस अवसर पर मैंने काव्य-पाठ में भाग लिया। मुझे याद नहीं कि उस प्रतियोगिता में अन्य कितने प्रतियोगी थे। लेकिन मेरे साथ कर्मचारी संघ के उस समय के अध्यक्ष कौर सिंह सेखों भी इसमें शामिल हुए, जिन्होंने संत राम उदासी की कविता सुनाई थी और मैंने सुरजीत पातर की – ‘हुण घरां नूं परतणा …’ मैं स्वयं को इस प्रतियोगिता के प्रथम तीन स्थानों पर देख रहा था। मुझे लगता था कि मेरी कविता दूसरा या तीसरा पुरस्कार जीतेगी। क्योंकि सबसे पहले स्थान पर मैं संघ के अध्यक्ष को देख रहा था। इसलिए नहीं कि उसकी प्रस्तुती मुझसे बेहतर थी, सिर्फ इसलिए कि वह संघ के अध्यक्ष थे और उन्हें ‘अनदेखा’ कैसे किया जा सकता था!

लेकिन मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, जब मेरी प्रस्तुति के लिए प्रथम स्थान की घोषणा की गई और संघ-अध्यक्ष को दूसरे पुरस्कार से संतोष करना पड़ा। उद्घोषक  विश्वविद्यालय का ही एक शिक्षक था, जो निर्णायक मंडल में बैठा था। कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने वाले अन्य दर्शकों में उप-कुलपति, रजिस्ट्रार, उप रजिस्ट्रार और विश्वविद्यालय के बड़ी संख्या में कर्मचारी शामिल थे।

इसके बाद मैं सुरजीत पातर से चार बार मिला। तीन बार दर्शक के तौर पर और एक बार मंच-संचालक के रूप में। 29 मार्च 2018 को अकाल यूनिवर्सिटी तलवंडी साबो में जब सुरजीत पातर आए तो उनका परिचय देने के लिए मैं मंच संचालक के तौर पर उपस्थित था। यहां मैंने उनसे अपना परिचय एक पाठक के रूप में करवाया। जिसमें मैंने उसी कविता को सुनाया (‘हुण घरां नूं  परतणा…’), जिसमें मुझे पहला पुरस्कार मिला था। इस कार्यक्रम में उप-कुलपति समेत पूरी यूनिवर्सिटी मौजूद थी। उनके साथ उनके छोटे भाई उपकार सिंह भी आये थे। छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों ने उनके साथ फोटो खिंचवाईं। छुट्टी के बाद भी हम काफी देर तक उनके साथ बैठे रहे, उनकी बातें सुनते रहे। आज जब यह महान कवि हमारे बीच शारीरिक रूप में मौजूद नहीं है तो मन भावुक हो रहा है। आज मैंने यूं ही प्रोफ़ेसर प्रीतम सिंह द्वारा संपादित ‘पंजाबी लेखक कोश’ (2003) को देखना शुरू किया। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि ‘लेखक कोश’ में “सुरजीत” नाम के 29 लेखक हैं, जिनमें 4 महिला-लेखिकाएँ भी शामिल हैं। सबसे बड़ी प्रविष्टियों वाले चार लेखक हैं — सुरजीत सिंह सेठी, सुरजीत सिंह गांधी, सुरजीत सिंह भाटिया और सुरजीत पातर। आज की तारीख में आकाश में ध्रुव तारे की तरह चमकने वाले लेखक सिर्फ और सिर्फ सुरजीत पातर ही हैं।

*

© प्रो. नव संगीत सिंह

# अकाल यूनिवर्सिटी, तलवंडी साबो-१५१३०२ (बठिंडा, पंजाब) ९४१७६९२०१५.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments