(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की भाईचारे एवं सौहार्द के पर्व ईद-उल-फितर के अवसर पर रचित एकअतिसुन्दर कविता “ईद ऐसी दोबारा न हो”। श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर कविता के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 51 ☆
☆ कविता – ईद ऐसी दोबारा न हो ☆
घर ही मस्जिद बन गई
सजदे में हैं लोग
माफी मांगें खुदा से
रब रोको यह रोग
मस्जिद में है बेबसी
लाचारी का बोझ
समझे बिना कुरान को
न अब फतवे थोप
मोमिन गलती हम करें
रब को कभी न कोस
अल्ला कभी न चाहते
बम गोले और तोप
मस्जिद रहीं पुकार हैं
बिन बोले ही बोल
गुनो सुनो समझो सदा
सुधरो खुद को तोल
ईद न ऐसी हो कभी
फिर दोबारा चांद
गले लगा मिल सकें
न,बेबस हैं इंसान
धर्म सभी पहुंचे वहीं
धरती तो है गोल
सभी साथ हिलमिल रहें
न कड़वाहट घोल
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
सुंदर प्रयास, बधाई