श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
( संजय उवाच में आज प्रस्तुत है अपवाद स्वरुप एक विचारणीय कविता)
वे बेच रहे हैं
हत्या,
आत्महत्या,
चीत्कार,
बलात्कार,
सिसकारी,
महामारी,
धरना,
प्रदर्शन,
हंगामा,
तमाशा,
वेदना,
संवेदना..,
इस हाट में
हर पीड़ा
उपजाऊ है,
हर आँसू
बिकाऊ है..,
राजनीति,
सत्ता,
षड्यंत्र,
ताकत,
सारे बिचौलिये
अघा रहे हैं,
इनकी ख़ुराक पर
गिद्ध शरमा रहे हैं..,,
मैं निकल पड़ा हूँ दूर,
चलते-चलते
वहाँ पहुँच गया हूँ
जहाँ से यह मंडी
न दिखती है,
न सुनती है..,
नरगिद्धों के लिए वर्जित
इस टापू पर
निष्पक्ष होकर
सोच सकता हूँ,
कुछ और नहीं तो
पीड़ित के लिए
कुछ देर सचमुच
रो सकता हूँ..!
© संजय भारद्वाज
प्रात 5:31 बजे, 3 अक्टूबर 2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सही है-हम सिर्फ पीड़िता के लिए आँसू बहा सकते हैं। काश, उनको दंड देने का अधिकार होता तो उन्हें तड़पा-तड़पा कर मारते ताकि दुबारा कोई ऐसा कुकृत्य करने में हजार बार सोचता। बहुत दारुणिक अभिव्यक्ति।