डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 64– साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
हर युग की पीड़ा रही, रहा मिलन का राग।
योग न बन पाया कभी, नहीं नदी का भाग।।
पेड कटे जंगल नहीं, तपती आज जमीन।
तड़प रहा है आदमी, बिन ज्यों पानी मीन।।
प्रीति तुम्हारी पावनी, जैसे दिव्य प्रकाश।
साथ तुम्हारा चाहिए, छू लूँगी आकाश ।।
भरी हृदय में वेदना, कदम कदम पर खार।
खारा सागर नैन में, किस विधि पाऊं पार।।
प्रीति बिना उर हो गए, जैसे रेगिस्तान।
रिश्तों की बगिया जली, घर लगते शमसान।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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