डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनका एक गीत “नाथ! चले आओ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 10 ☆
☆ नाथ! चले आओ ☆
जीवन संध्या होने को है, अब तो नाथ चले आओ
नैनो की ज्योति बोझिल, आके दरस दिखा जाओ
जीवन संध्या…
मन व्याकुल है, नेत्र विकल, अधरों पर उमड़ी है प्यास
स्नेह सुधा बरसाओ आकर, मेरे मन को हर्षा जाओ
जीवन संध्या…
सांसो की सरगम मध्यम हुई, जीवन से आशा बिछुड़ी बाधित हैं
स्वर मेरे उर के, आकर प्यास जगा जाओ
जीवन संध्या…
सहमे-सहमे अंधकार में, मार्ग बताने वाला कोई नहीं
ऐसे में बनकर रहबर तुम, सही कहा दिखला जाओ
जीवन संध्या…
जीवन नैया डोल रही, मझधारों के बीच प्रभु
तुम तारणहार जगत् के, मुझको पार लगा जाओ
जीवन संध्या…
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
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