श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की एक सार्थक कविता – महापौर। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 65 ☆
☆ कविता – महापौर ☆
शहर का मुखिया,
महापौर ऐसा हो,
जब भी जहां मिले,
तो मुस्करा के मिले,
जन जन के दुःख दर्द,
खिल खिला के दूर करे,
धर्म सम्प्रदाय से उठकर,
मानव धर्म का निर्वाह करे,
तेज तर्रार आदर्श लिए,
हरियाली की बात करे,
धूल को शहर से भगा के,
चमचमाती सड़क दे,
गगनचुंबी इमारतों के पास,
झिलमिलाती रोशनी दे,
बेरोजगारों को रोजगार दे,
समस्याओं को मार दे,
वार्ड वार्ड घूमकर,
जन जन को प्यार दे,
जनहित के कार्य में,
घर -द्वार त्याग दे,
महकते गुलाब और,
आलीशान मुस्कान दे,
शहर के द्वार में,
शान शौकत प्यार दे,
© जय प्रकाश पाण्डेय