श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
(श्री संतोष नेमा “संतोष” के काव्य संग्रह “सपनो के गांव में” का आज 16 अक्टूबर 2020 को ऑनलाइन विमोचन समारोह शाम 7 बजे साहित्यिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था “पाथेय “ एवं “मंथन”, जबलपुर के सौजन्य से आयोजित किया गया है।
श्री नेमा जी को ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 56☆
☆ संतोष के दोहे ☆
सहनशीलता से मिलें,खुद अपने अधिकार
रखें शारदा मातु पर ,श्रद्धा अरु विश्वास
कर्तव्यों को भूल कर,अधिकारों की बात
यही आजकल हो रहा,देकर खुद को मात
एक दूसरे पर नहीं, रहा विमल विश्वास
आज समय कहता यही, रखें न कोई आस
जयति जयति माँ शारदा, सादर करहुं प्रणाम
एक आस विस्वास तुम, तुमहिं संवारो काम
कर्म वचन मन से सदा, करिये पूजा पाठ
उत्सुकता नवरात्रि की, बढ़ा रही है ठाठ
सहनशीलता अब कहाँ, धीरज धरे न कोय
वैभव की यह लालसा, सबके अंदर होय
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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