श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 8 ☆
☆ ब्लेक होल ☆
कैसे ज़ब्त कर लेते हो
इतने दुख, इतने विषाद
अपने भीतर..?
विज्ञान कहता है
पदार्थ का विस्थापन
अधिक से कम
सघन से विरल
की ओर होता है,
ज़माने का दुख
आता है, समा जाता है,
मेरा भीतर इसका
अभ्यस्त हो चला है
सारा रिक्त शनैः-शनैः
‘ब्लैक होल’ हो चला है!
© संजय भारद्वाज , पुणे
मेरा भीतर इसका
अभ्यस्त हो चला है
सारा रिक्त शनैः-शनैः
‘ब्लैक होल’ हो चला है!
अध्यात्म और विज्ञान का मिलाप आपकी कविताओं में होता है जो विषय को और असरदार करता हैं ।
बहुत बढ़िया रचना।
विजया टेकसिंगानी
शिव ने विष को धारण किया, आपने ससरे दुख और विषाद को जब्त कर लिया है।
बहुत खूब संजय जी।
रिक्तता की नई अभिव्यक्ति, बहुत खूब!!!