श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर , अर्थपूर्ण एवं भावप्रवण कविता “ बहुत मुश्किल है ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 15 ☆
☆ बहुत मुश्किल है ☆
घटनाएं अच्छी-बुरी
घट रही थी
जिंदगी खुशी खुशी
कट रही थी
यह कैसा प्रलय आया
जिसने तूफान लाया
इससे बच पाना
बहुत मुश्किल है
हमने तो जीवन भर
फूलों के पौधे लगाए
फूलों के संग संग
कांटे भी उग आए
फूलों पर कब्जा
जमाने ने कर लिया
कांटों से दामन
हमारा भर दिया
फूलों से बेहतर
हमने कांटों को बनाया
तराशा,
खुशबू से महकाया
फिर भी इनको कांटों की
क्षमता पर शक है
क्या वाकई इनको
ये कहने का हक है
इन तंगदिल वालों से
जीत पाना
बहुत मुश्किल है
घर उनका जला है तो
खुश हो रहे हो
बेफिक्र, खूब
तानकर सो रहे हो
कल घर तूम्हारा जलेगा
तो तुम्हें पता चलेगा
इस आग की कोई
धर्म या जाति नहीं होती
आग लगती है तो वो
सबकुछ है जलाती
यह इन दिग्भ्रमित
लोगों को समझाना
बहुत मुश्किल है
कसौटी पर परखो
फिर उसे चाहों
इन्सान ही रहने दो
खुदा ना बनाओं
खुदा जो बन गया तो
तूम्हारी नहीं सुनेगा
अपनी प्रशंसा के ही
सपने बुनेगा
उसके डर से
या उसके कहर से
इन नशे में गाफिल
लोगों को बचा पाना
बहुत मुश्किल है।
© श्याम खापर्डे
18/10/2020
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