डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  एक अत्यंत विचारणीय  आलेख आत्मविश्वास – अनमोल धरोहर. यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 69 ☆

☆ आत्मविश्वास – अनमोल धरोहर

‘यदि दूसरे आपकी सहायता करने को इनकार कर देते हैं, तो मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं, क्योंकि उनके न कहने के कारण ही मैं उसे करने में समर्थ हो पाया। इसलिए आत्मविश्वास रखिए; यही आपको उत्साहित करेगा,’ आइंस्टीन के उपरोक्त कथन में विरोधाभास है। यदि कोई आपकी सहायता करने से इंकार कर देता है, तो अक्सर मानव उसे अपना शत्रु समझने लग जाता है। परंतु यदि हम उसके दूसरे पक्ष पर दृष्टिपात करें, तो यह इनकार हमें ऊर्जस्वित करता है; हमारे अंतर्मन में आत्मविश्वास जाग्रत कर उत्साहित करता है और हमें अपनी आंतरिक शक्तियों का अहसास दिलाता है, जिसके बल पर हम कठिन से कठिन अर्थात् असंभव कार्य को भी क्रियान्वित करने अथवा अंजाम देने में सफल हो जाते हैं। सो! हमें उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए, जो हमें बीच मझधार छोड़ कर चल देते हैं। सत्य ही तो है, जब तक इंसान गहरे जल में छलांग नहीं लगाता, वह तैरना कैसे सीख सकता है? उसकी स्थिति तो कबीरदास के नायक की भांति ‘मैं बपुरौ बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ’ जैसी होगी।

सो! यह मत कहो कि ‘मैं नहीं कर सकता’, क्योंकि आप अनंत हैं। आप कुछ भी कर सकते हैं।’ स्वामी विवेकानंद जी की यह उक्ति मानव में अदम्य साहस के भाव संचरित करती है; उत्साहित करती है कि आप में अनंत शक्तियां संचित हैं; आप कुछ भी कर सकते हैं। हमारे गुरुजन, आध्यात्मिक वेद-शास्त्र व उनके ज्ञाता विद्वत्तजन, हमें अंतर्मन में निहित अलौकिक शक्तियों से रू-ब-रू कराते हैं और हम उन कल्पनातीत असंभव कार्यों को भी सहजता- पूर्वक कर गुज़रते हैं। इसके लिए मौन का अभ्यास आवश्यक है, क्योंकि वह साधक को अंतर्मुखी बनाता है; जो उसे ध्यान की गहराइयों में ले जाने में सहायक सिद्ध होता है। महर्षि रमण, महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर वर्द्धमान आदि ने भी मौन साधना द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार किया।

मौन रूपी वृक्ष पर शांति के फल लगते हैं अर्थात् मौन से हमारे अंतर्मन में अलौकिक शक्तियां जाग्रत होती हैं, जिसके परिणाम-स्वरूप जीवन में सकारात्मकता दस्तक देती है। वास्तव में मौन जीवन का सर्वाधिक गहरा संवाद है। सो! मानव को शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि यह महाभारत जैसे महायुद्ध के जनक भी हो सकते हैं।

स्वामी योगानंद जी के शब्दों में ‘यह हमारा छोटा-सा मुख एक तोप के समान है और शब्द बारूद के समान हैं– जो पल भर में सब कुछ नष्ट कर देते हैं। सो! व्यर्थ व अनावश्यक मत बोलो और तब तक मत बोलो; जब तक तुम्हें यह न लगे कि तुम्हारे शब्द कुछ अच्छा कहने जा रहे हैं।’ इसलिए मौन मानव की वह मन:स्थिति है, जहां पहुंच कर तमाम झंझावात शांत हो जाते हैं और मानव को विभिन्न मनोविकारों चिंता, तनाव, आतुरता व अवसाद से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इसलिए स्वामी योगानंद जी मानव-समाज को अपनी अमूल्य शक्ति व समय को व्यर्थ के वार्तालाप में बर्बाद न करने का संदेश देते हैं; वहीं वे भोजन व कार्य करते समय भी मौन रहने की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं।

सो! जब आपके हृदय की भाव-लहरियां शांत होती हैं, उस स्थिति में आपको अच्छे विकल्प सूझते हैं; आप में आत्मविश्वास का भाव जाग्रत होता है और आप उन लोगों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं; जिनके कारण आप उस असंभव कार्य को अंजाम देने में समर्थ हो सके। परंतु इस समस्त प्रक्रिया में तथाकथित अनुकूल परिस्थितियों व आपकी सकारात्मक सोच का भी अभूतपूर्व योगदान होता है। इसलिए ‘मैं कर सकता हूं’ को जीवन का मूल-मंत्र बनाइए और आजीवन निराशा को अपने हृदय में प्रवेश न पाने दीजिए। इस स्थिति में दोस्त, किताबें, रास्ता व सोच अहम् भूमिका निभाते हैं। यदि वे ठीक हैं, तो आपके लिए सहायक सिद्ध होते हैं; यदि वे ग़लत हैं, तो गुमराह कर पथ-भ्रष्ट कर देते हैं और उस अंधकूप में धकेल देते हैं; जहां से मानव कभी बाहर आने की कल्पना भी नहीं पाता। इसलिए सदैव अच्छे दोस्त बनाइए; अच्छी किताबें पढ़िए; सकारात्मक सोच रखिए और सही राह का चुनाव कीजिए… राग-द्वेष व स्व-पर का त्याग कर, ‘सर्वेभवंतु सुखीनाम्’ की स्वस्ति कामना कीजिए, क्योंकि जैसा आप दूसरों के लिए करते हैं, वही लौट कर आपके पास आता है। सो! संसार में स्वयं पर विश्वास रखिए और सदैव अच्छे कर्म कीजिए, क्योंकि वे आपकी अनमोल धरोहर होते हैं; जो आपको जीते-जी मुक्ति की राह पर चलने को प्रेरित ही नहीं करते; आवागमन के चक्र से भी मुक्त कर देते हैं।

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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