आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  आचार्य जी  की एक  नवगीत  नवगीत: बाँस – बाँसलिया । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 28 ☆ 

☆ नवगीत: बाँस – बाँसलिया ☆ 

भोर भई दूँ बुहार देहरी अँगना

बाँस बहरी टेर रही रुक जा सजना

 

बाँसगुला केश सजा हेरूँ  ऐना

बाँसपिया देख-देख फैले नैना

बाँसपूर लुगरी ना पहिरब बाबा

लज्जा से मर जाउब, कर मत सैना

 

बाँस पुटु खूब रुचे, जीमे ललना

 

बाँस बजें तैं न जा मोरी सौगंध

बाँस बराबर लबार बरठा बरबंड

बाँस चढ़े मूँड़ झुके बाँसा कट जाए

बाँसी ले, बाँसलिया बजा देख चंद

 

बाँस-गीत गुनगुना, भोले भजना

 

बगदई मैया पूजूँ,  बगियाना  भूल

बतिया बड़का लइका, चल बखरी झूल

झिन बद्दी दे मोको, बटर-बटर हेर

कर ले बमरी-दतौन, डलने दे धूल

 

बेंस खोल, बासी खा, झल दे बिजना

***

शब्दार्थ : बाँस बहरी = बाँस की झाड़ू, बाँस पुटु = बाँस का मशरूम, जीमना = खाना,  बाँसपान = धान के बाल का सिरा जिसके पकने से धान के पकाने का अनुमान किया जाता है, बाँसगुला = गहरे गुलाबी रंग का फूल,  ऐना = आईना, बाँसपिया = सुनहरे कँसरइया पुष्प की काँटेदार झाड़ी, बाँसपूर = बारीक कपड़ा, लुगरी = छोटी धोती,  सैना = संकेत,  बाँस बजें = मारपीट होना, लट्ठ चलना,  बाँस बराबर = बहुत लंबा, लबार = झूठा, बरठा = दुश्मन, बरबंड – उपद्रवी, बाँस चढ़े = बदनाम हुए, बाँसा = नाक की उभरी हुई अस्थि, बाँसी = बारीक-सुगन्धित चावल, बाँसलिया = बाँसुरी, बाँस-गीत = बाँस निर्मित वाद्य के साथ अहीरों द्वारा गाये जानेवाले लोकगीत, बगदई = एक लोक देवी, बगियाना = आग बबूला होना, बतिया = बात कर, बड़का लइका = बड़ा लड़का, बखरी = चौकोर परछी युक्त आवास, झिन = मत, बद्दी = दोष, मोको = मुझे, बटर-बटर हेर = एकटक देख, बमरी-दतौन = बबूल की डंडी जिससे दन्त साफ़ किये जाते हैं, धूल डालना = दबाना, भुलाना,  बेंस = दरवाजे का पल्ला, कपाट, बासी = रात को पकाकर पानी डालकर रखा गया भात,  बिजना = बाँस का पंखा. 

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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