श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं मानवीय संवेदनशील रिश्तों पर आधारित एक अतिसुन्दर लघुकथा “कर्मवीर”। कई बार हम जल्दबाजी और आवेश में कुछ ऐसे निर्णय ले लेते हैं जिसके लिए जीवनपर्यन्त पछताते हैं और वह समय लौट कर नहीं आता। / शिक्षाप्रद लघुकथाएं श्रीमती सिद्धेश्वरी जी द्वारा रचित साहित्य की विशेषता है। इस सार्थक एवं भावनात्मक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 68 ☆
☆ लघुकथा – कर्मवीर ☆
कर्मवीर का बोर्ड लगा देख प्रकाश ठिठक सा गया। अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई। क्योंकि वह तो लगभग 21 साल बाद शहर लौट रहा था। दरवाजे पर आवाज दिया, एक हट्टा कट्टा नौजवान बाहर आया और पूछा… कौन है और क्या चाहिए?? प्रकाश ने सोचा शायद में गलत जगह पर आ गया। यह शायद स्नेहा का घर तो नहीं है। लौट कर वह चला गया।
स्नेहा और प्रकाश दोनो एक बिजली विभाग में काम करती थें। दोनों में आपसी तालमेल के कारण दोनों परिवारों की विरोध के बावजूद विवाह कर लिया था।
दोनों की हमेशा कर्म और संस्कारों को लेकर एक जैसी राय बनती थी और दोनों की बातें भी एक जैसी थी। दोनों में बहुत प्यार था परंतु न जाने किसकी नजर लगी दोनों का आपस में मतभेद हो गया।
एक साल के अंदर ही दोनो अलग अलग हो गए दोनों को एक शब्द बहुत पसंद था वो था कर्मवीर अपने बच्चे का नाम रखना चाहते थे।
अलग होने के बाद प्रकाश तबादला करा दूसरे शहर चला गया और लौटकर जब आया बहुत देर हो चुकी थी।
ऑफिस पहुंचा तो बिजली ऑफिस वालों ने बताया साहब आपके ट्रांसफर के बाद लगभग दो साल बाद तक स्नेहा मैडम ऑफिस नहीं आई।
और फिर आने लगी शायद उन्होंने दूसरी शादी कर ली है। क्योंकि एक सारांश नाम का नौजवान गाड़ी में छोड़ने और लेने आता है।
प्रकाश को याद है थोड़ी सी बात और मतभेद के कारण दोनों ने अलग होने का फैसला बहुत जल्दी में ले लिया था।
और दोनों अलग हो चुके थे प्रकाश के जाते जाते स्नेहा बता भी नहीं सकी थी कि वह पापा बनने वाले हैं।
करवा चौथ का सामान लेकर स्नेहा शाम को घर जा रही थी।इक्कीस मिट्टी के करवा खरीद रही थीं। बेटे को आश्चर्य तो हुआ पर बोला कुछ नहीं।
शाम को खुद श्रंगार कर, करवो को भरकर, दीपक सजा पूरे घर को सजाकर स्वयं तैयार हो गई। सारांश,अपने बेटे को कहा…. आज करवा चौथ का पूजन करना है। बेटे ने सिर्फ हा में सिर हिला दिया।
मां के दिन रात मेहनत और उनके व्यवहार के कारण कभी कोई बात नहीं पूछना चाहता था।
शाम ढले सब समान लेकर मां और सारांश दोनो छत पर पहुंच गए। पूजन का थाल लिए मां बेटा दोनो छत पर खड़े चांद का इंतजार कर रहे थे। बेटे ने आवाज लगाई… मां चांद निकल आया पूजन कर लो परंतु स्नेहा बोली… मैं थोड़ा और इंतजार कर लूं। फिर पूजन करती हूं।
इक्कीस करवो का दीपक लहरा रहा था। जो ही उसने आरती की थाली उठाई सामने की सीढ़ियों से प्रकाश को आते देख चूनर से सिर ढकते बोल उठी…. बेटा आ जा चांद निकल आया। सारांश की समझ में कुछ नहीं आ रहा था परन्तु उसने देखा ये तो वही व्यक्ति हैं जो सुबह आए थे और बिना कुछ बोले चले गये थे। वह सीधी छलनी के सामने जाकर खड़े हो गए और मां खुशी से रोए जा रही थी।
सारांश तो बस इन लम्हों को अपने मोबाइल में कैद करते जा रहा था कि आज मां पहला करवा चौथ मना रही है। वह भी पहली बार शायद पापा के साथ। त्यौहार मना रही है बहुत खुश था सारांश। स्नेहा और प्रकाश बस एक दूसरे को निहार रहे थे।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈