श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक समसामयिक व्यंग्य “पागुर करती गाय का चिंतन“। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 75 ☆
☆ व्यंग्य – पागुर करती गाय का चिंतन ☆
जाड़े का मौसम है। दांत किटकिटा रहे हैं। गंगू के घर वाले चिंतित हैं। गंगू अपने हक के लिए बीस दिन से दिल्ली के बार्डर की सड़क में कांप रहा है। दो डिग्री वाली कंपकंपाती लहर से हाथ पैर सुन्न हो गए हैं। सत्ता के लोग कह रहे हैं कि हम किसान के लिए लड़ रहे हैं पर विपक्ष इनको बरगला रहा है। सत्ता के लोग कह रहे हैं कि किसान गरीब है खेती करने के काबिल नहीं है, इसीलिए अब इनकी जमीनों में हमारे लोग खेती करेंगे। सरकार कह रही है, हम गंगू की आमदनी दोगुनी कर देंगे,पर गंगू जैसे करोड़ों किसानों को विश्वास नहीं हो रहा है क्योंकि वे कई सालों से हाथ मटका कर झूठ को सच की तरह से बोलने वाले और झटका मारकर वोट ठगने वालों से परेशान है।घर में पागुर करती गाय चिंतित हैं कि उसका मालिक अपने हक की मांग के लिए दर दर ठोकरें खा रहा है, वह घर से बीस दिन पहले गया था और अभी तक नहीं लौटा। कूं कूं करता मोती गंगू की याद में रात को रोने लगता है, गांव में कुत्ते के रोने को अपकुशन मानते हैं। बेचारी गाय अपने बछड़े को दूध नहीं पिला पा रही है, मालिक की याद में आंसू बहा रही है। इतने दिन में गाय अच्छी तरह समझ गयी है कि गाय और किसान राजनीति के लिए बनाए गए हैं। पिछली बार मंदसौर में गंगू का भाई गोली खाकर मरा था तब भी गाय रोयी थी, इस बात पर भी रोयी थी कि कुर्सी पकड़ नेता ने मरने वाले को एक करोड़ देने का फरमान मीडिया में सुनाया था,पर कलेक्टर ने कहा था कि किस मद से पैसा देंगे, घोषणा करना तो इनका जन्मजात अधिकार है। गाय सोच रही है कि लोग भाषण में देश को कृषि प्रधान देश कहते हैं पर विपक्ष कुर्सी प्रधान देश कहता है, आखिर लफड़ा क्या है ? ये किसान फंदे पर क्यों लटकते हैं। पटवारी,आर आई, तहसीलदार का पेट किसानों से पलता है, नये नये कानून से इनके खर्चा पानी के भाव बढ़ते हैं।
जो नए कानून आए हैं, पागुर करती गाय सोच रही है ये किसानों के हक में नहीं है। नया कानून यह भी कहता है कि यदि कोई कारपोरेट किसी किसान को धोखा देता है या उसे नुकसान पहुंचाता है तो वह किसान उस कारपोरेट के खिलाफ किसी कोर्ट में कोई केस नहीं कर सकता। यदि किसी देश के लोगों से कोर्ट में जाने का अधिकार ही छीन लिया जाए तो इसका मतलब है आपने पूरी कानून व्यवस्था और न्याय पाने का जो संवैधानिक अधिकार है उसे कुचल दिया है । इस नए कानून में लिखा है कि किसान कारपोरेट की शिकायत लेकर एसडीएम के पास जाएगा। एसडीएम साहब उस विशालकाय कारपोरेट चाहे वह कोई भी हो उसके खिलाफ मुकदमा सुनेंगे और फैसला देंगे।
गाय हंस रही है बेचारे एसडीएम पर। एक एसडीएम ऐसे कारपोरेट जिनके कहने से भारत सरकार नीतियां बनाती हो, कानून बदलती हो, वह उनके खिलाफ फैसला दे पाएगा? एसडीएम छोटा अफसर होता है, उसके आसपास के नेता उससे वसूली करते हैं,उसकी बीबी उससे हीरे-जवाहरात जड़े हार की मांग करती है,वह कारपोरेट से थर-थर कांपता रहता है क्योंकि कारपोरेट वाले को उसकी भी चिंता है। किसान का क्या है 14 करोड़ से ज्यादा किसान हैं इस देश में। सब ऐन वक्त पर नेतागिरी पर उतारू हो जाते हैं। आन्दोलन करने की इनकी आदत बन गई है……
अचानक इस खबर को सुनकर गाय की पागुर रुक गई, खबर आयी है कि उसका मालिक गंगू ठंड खाकर मर गया है………
© जय प्रकाश पाण्डेय
आपके लेख में कितनी सच्चाई है ये पढने के बाद मनन कर ही जाना जा सकता है
ऐसे ही लिखते रहे।