श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एकअतिसुन्दर कविता “रिश्ते”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 23☆
☆ रिश्ते ☆
यह कैसे रिश्ते हैं
जिनके घाव
जीवन भर रिसते है
कोई मलहम या दवाई
जो आपने घाव पर लगाई
वो गर घाव नहीं भर पाई
तो वो कभी कभी
नासूर बन जाते है
हर कदम पर
तड़पाते हैं
और घाव अगर
भर भी जाये
तो भी टीस
बाकी रहती है
जो आखरी साँस तक
साथ साथ बहती है
पूरा जीवन चक्र भी
अधूरा पड़ जाता है
झूठा अहम बेवजह
अड़ जाता है
अगर कोई बिगड़े
रिश्ते सुधारना भी चाहें
महीन धागों से
बुनना भी चाहें
तो वो, पुरानी बातें
भूल जायें
रिश्तों में
मिठास घोल आयें
तब भी टूटे रिश्ते
जुड़ते जुड़ते
जुड़ते हैं
अथक प्रयास के
बाद ही
सही राह पर
मुड़ते हैं
क्योंकि कटुता
धीमा धीमा ज़हर है
रिश्तों के लिए कहर है
इसलिए,
क्यों ना हम
झूठे “मैं” को
भूल जायें ?
“मैं” की जगह
“हम” को अपनाये ?
क्योंकि मित्र,
रिश्ते बीते हुए
कल की अमानत है
आज के वर्तमान की
हकीकत है
और
आने वाले कल की
वसीयत है।
© श्याम खापर्डे
भिलाई 05/12/20
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