श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “वायरल पोस्ट”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 48 – वायरल पोस्ट ☆
आजकल के बच्चे सेल्फी लेने में चैंपियन होते हैं। बस स्टाइल से खड़े होने की देर है , फोटो फेसबुक से लेकर इंस्टा व ट्विटर पर छा जाती है। सब कुछ योजनाबद्ध चरण में होता है। पहले से ही तय रहता है कि किस लोकेशन पर कैसे क्लिक करना है। एक प्रेरक कैप्शन के साथ पोस्ट की गई फोटो पर धड़ाधड़ लाइक और कमेंट आने लगते हैं। जितनी सुंदर फोटो उतनी ही मात्रा में शेयर भी होता है।
ये सब कुछ इतनी तेजी से होता है कि आई टी एक्सपर्ट भी हैरान हो जाते हैं कि हम लोग तो इतनी मशक्कत के बाद भी अपने ब्रांड की वैल्यू नहीं बढ़ा पाते हैं। जीत हासिल करने हेतु न जाने कितने स्लोगन गढ़ते हैं तब जाकर कुछ हासिल होता है। पर ये नवोदित युवा तो एक ही फ़ोटो से रंग बिखेर देते हैं।
ये सब कुछ तो आज की जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है। मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में हर दूसरी पोस्ट सोशल मीडिया में घूमती हुई दिखती है। जिसमें मोटिवेशन हो या न हो अलंकरण भरपूर रहता है। जोर शोर से अपनी बात को तर्क सहित रखने की खूबी ही आदर्श बन कर उभरती है। खुद भले ही दूसरों को फॉलो करते हों पर अपनी पोस्ट पर किसी की नज़र न पड़े ये उन्हें मंजूर नहीं होता। जबरदस्त फैन फॉलोइंग ही उनके जीवन का मुख्य सूत्र होता है। नो निगेटिवेव न्यूज को ही आदर्श मान कर पूरा अखबार प्रेरणादायक व्यक्तवों से भरा हुआ रहता है। अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी पोस्ट करने की छूट किस हद तक जायज रहती है इस पर चिंतन होना ही चाहिए।
हम लोग कोई बच्चे तो हैं नहीं कि जो मन आया पोस्ट करें, अधूरी जानकारी को फॉरवर्ड करते हुए किसी को भी वायरल करना तो मीडिया के साथ भी सरासर अन्याय है। इस सबसे तो वायरल फीवर की याद आ जाती है , कि कैसे एक दूसरे के सम्पर्क में आते ही ये बीमारी जोर पकड़ लेती है। दोनों में इतनी साम्यता है कि सोच कर ही मन घबरा जाता है। बीमारी कोई भी हो घातक होती है। पर क्या किया जाए तकनीकी ने ऐसे – ऐसे विकास किए हैं कि सब कुछ एक क्लिक की दूरी पर उपलब्ध हो गया है।
खैर ये सब तो चलता ही रहेगा , बस अच्छी और सच्ची खबरें ही वायरल हों इनका ध्यान हम सबको रखना होगा।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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