श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 65 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
संज्ञाएँ चर्चित हुई, सर्वनाम बदनाम
पनपे प्रेम समास से, तब होते शुभ काम
नव पीढ़ी की आजकल, बदल रही है सोच
प्रेम प्रदर्शित सड़क पर, करते बिन संकोच
मात-पिता अब खोजते, प्रेम और सदभाव
पर बच्चों में गुम हुआ, सेवा भाव लगाव
समय कभी रुकता नहीं, तेज समय की चाल
मान समय का कीजिए, तब सुधरेंगे हाल
सुरसा सा दिखने लगा, महँगाई का रूप
लगाम भी न लगा सके, कैसे शासक भूप
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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