श्री मच्छिंद्र बापू भिसे
का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। आपकी अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। आपने हमारे आग्रह पर यह साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज प्रारम्भ करना स्वीकार किया है, इसके लिए हम आपके आभारी हैं। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “खुशी तुझे ढूंढ ही लिया”।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 1 ☆
☆ खुशी तुझे ढूँढ़ ही लिया ☆
आँख खुली नींद में,
मुस्कराती माँ के आँचल में,
पिता के आदर, गुस्सा, प्यार में,
भाई की अनबन तक़रार में,
दीदी की अठखेली मुस्कान में,
हे खुशी, तू तो भरी पड़ी है,
मेरे परिवार के बागियान में।
पाठशाला के भरे बस्ते में,
टूटी पेन्सिल की नोक में,
फटी कापी की पात में,
दोस्त की साजी किताब में,
परीक्षा और नतीजे खेल में,
हे खूशी तू खड़ी, खड़ी रंग में,
तेरा निवास ज्ञानमंदिर में।
कालेज की भरी क्लास में,
यार-सहेली के शबाब में,
प्यार कली खिली उस साज में,
चिट्ठी-गुलाब-बात के अल्फ़ाज में,
गम-संगम आँसू बरसाती बरसात में,
हे खुशी, तू बसी विरहन आस में,
और पियारे मिलन के उपहास में।
समझौते या कहे खुशी के विवाहबंध में
पति-पत्नी आपसी मेल-जोल में,
गृहस्ती रस्में-रिवाज निभाने में,
माता-पिता बन पदोन्नति संसार में,
जिम्मेदारी एहसास और विश्वास में,
हे खुशी, तुझे तो हर पल देखा,
तालमेल करती जिंदगी तूफान में।
बचपन माँ के आँचल में,
मिट्ठी-पानी हुंकार में,
यौवन की चाल-ढाल में,
सँवरती जिंदगी ढलान में,
पचपन के सफेद बाल में,
हे खुशी, तू सजती हर उम्र में,
और चेहरे सूखी झुर्रियों में।
आँख मूँद पड़े शरीर में,
आँसू भरें जन सैलाब में,
चार कंधों की पालखी में,
रिश्तों की टूटती दीवार में,
चिता पर चढ़ते हार में,
हे खुशी, तुझे तो पाया,
जन्म से श्मशान की लौ बहार में।
हे खुशी, एक सवाल है मन में,
क्यों भागे हैं जीव, ख्वाइशों के वन में,
लोग कब समझेंगे तू भी है गम में,
जिस दिन ढूँढेंगे तुझे खुद एहसास में,
और औरों को बाँटते रहे प्यार में,
हे खुशी, खुशी होगी मुझे लिपटे कफन में,
और लोगों के लौटते भारी हर कदम में।
हे खुशी आखिर तुझे ढूँढ ही लिया,
जन्म से मृत्यु तक के अंतराल में।
© मच्छिंद्र बापू भिसे
भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063
ई-मेल: [email protected] , [email protected]
Aapki rachana padhkar bahut achha laga aage bhi hindi rachnao ka nirman kare or hame sahyog kare,
God bless you
आपके द्वारा हमारी रचना को सराहा जाना सौभाग्य की बात है. आपक हार्दिक आभार !!!
बहुत खूब
हार्दिक धन्यवाद !
सच आप के जैसा यार मिला है हमें यह भाग्य हमारा l
यह प्रार्थना करते हैं भगवान से खुशकिस्मत रहे आप l
ऐसेही उन्नति करते रहो यही शुभकामनाए l l
आभार !!!
सुंदर प्रतिक्रिया ! हार्दिक आभार !
जिंदगी जीने की राह दिखाने वाली इस रचना को पढ़कर बहुत खुशी हुई ।’क्यों भागे हैं जीव….’ यह पंक्ति मन को भा गई ।सुंदर रचना।
रचना को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद !
जिंदगी जीने की राह दिखाने वाली इस रचना को पढ़कर बहुत खुशी हुई ।’क्यों भागे हैं जीव….’ यह पद मन को भा गई ।सुंदर रचना।
बहुत बढिया ।
आप ऐसे ही लिखतें रहें ।
सादर धन्यवाद !
सर, अप्रतिम कविता है! आपको बहुत शुभकामनाएं!
मेरी छात्रा तक यह रचना पहुँचाने हेतू संपादक महोदय जी का आभार !
वीणा बहुत – बहुत आशीष !!!
भाई मिछेन्द्र जी भिसे, गर्व है आप जैसे साहित्य सृजक, हिंदी भाषा के लिए समर्पित व्यक्तित्व पर।। आपने इस रचना के माध्यम से एक खूबसूरत यथार्थ का सम्मानजनक चित्रण किया है। दिल को छू गई यह रचना। आप खूब सृजनशील रहो, सम्मान प्राप्त करो व हिंदी का मान बढाते रहो, यही मंगलकामना है।
“●राजकुमार जैन राजन, (लेखक/प्रकाशक/संपादक), आकोला ,”राजस्थान मो 9828219919
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बालसाहित्य राजकुमार जैन ‘राजन’ जी की प्रतिक्रिया ने तो मेरी सृजना को प्रोत्साहित कर सम्मानित किया. मेरी रचना की मौलिकता सार्थक हो गई. आपका विशेष आभार!!!
GAVIT ALISH KANTILAL, उस्मान मुलाणी, अरविंद नागनाथ वाघचवरे, शहाजी भोसले, बिलाल शिकलगार, Veena Tapale, राजकुमार जैन राजन, आप सभी की प्रतिक्रियाएँ पढ़कर मेरी साहित्य स्रुजिता को बढ़ावा देने हेतू आप सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त करता हूँ. आपका स्नेह यूँ ही बना रहे !