डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवणकविता “माहिया”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 75 – साहित्य निकुंज ☆
☆ माहिया ☆
नूतन का सबेरा है
हटता आँखों से
मनका अँधेरा है।
यादें तो सुहानी है
जाओ अब तुम भी
बीते की रवानी है।
करना है अब तुमको
साल के आने का
स्वागत अब हम सबको
मुझे याद दिला जाना
दिल है तुझको दिया
मुझको न बिसराना।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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