प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी के अप्रतिम दोहे “चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद“। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 24 ☆
☆ चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद ☆
चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद
कानों में नित गूंजते उनके आशीर्वाद
सरस्वती की कृपा से जिनको प्रिय साहित्य
दुनिया के उलझाव से दूर वही है नित्य
हर एक के मन में सदा उठते अगणित भाव
जो जीवन में डालते रहते कई प्रभाव
सदा सत्य होते नहीं सब के सब अनुमान
लक्ष्य प्राप्ति के लिए नित आवश्यक अनुसंधान
विपदार्ओ से जूझ जो स्वतः बनाते राह
करने उनका अनुकरण मन नित रख उत्साह
रहते सबके साथ भी रहिए जग से दूर
जिसे आत्मविश्वास व सुखी सदा भरपूर
कैसे कोई पूर्ण हो उनके मन की चाह
औरों को जो कोसते रह खुद लापरवाह
अगर प्रेम का भाव है सुखी तो सब परिवार
दुख चिंता बढ़ती सदा आप पाकर के अधिकार
मन को वश में राखिए यदि है खुद से प्यार
मन के वश में हो सदा दुखी हुआ संसार
मन की उतनी मानिए सधें जहाँ शुभ काम
सुने न मन की राय वह जिससे हो बदनाम
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈