श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत एकअतिसुन्दर सार्थक लघुकथा “बेरोजगार….”। समाज में सस्वचित्र प्रदर्शन या दिखावे की पराकाष्ठा हो गई है जिसे बेहद सुन्दर तरीके से श्रीमती सिद्धेश्वरी जी ने अपनी लघुकथा में वर्णित किया है। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लेखनी को सदर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 74 ☆
लघुकथा – बेरोजगार ….
कड़कड़ाती ठंडक और नर्मदा नदी का किनारा। बड़े ही दान दाता दिखने लगते हैं आजकल।
कुछ थोड़ा बहुत सामान और जरूरत की वस्तु देने से फोटो लेकर और बड़े प्यार से बात कर उसकी गरिमा और बड़ा कर प्रदर्शन का चलन जोरों पर है।
जिससे कोई भी अछूता नहीं है। सदा की भांति एक नर्मदा भक्त जो हमेशा ठंड में कपड़ों का दान किया करता था। ऐसा उनका मानना था। पर दिखावा कभी नहीं किया करता, बस भोले की कृपा और माई नर्मदा की इच्छा कह कर आगे बढ़ता जाता था।
घाट पर ऊपर से नीचे सभी उसको पहचानते थे क्योंकि ठंड बहुत थी और वह उस दिन साड़ी और कुछ गरम स्वेटर लेकर गया हुआ था और कान टोपी मफलर बुजुर्गों के लिए बांट रहा था।
सुबह 7:00 बजे का समय था ठंड से सभी सिकुड़े, जो भी फटे कपड़े रखे थे। कोई सोया कोई बैठा सभी के हाथ पांव ढके हुए थे।
महानुभाव बांटते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। सभी हाथ आगे बढ़ा कर ले रहे थे। अचानक दो हाथ आगे फटे कंबल से बाहर आए। महानुभाव ने पूछा… आप महात्मा है या साध्वी? आपको कौन सा कपड़ा दूं, तो अंदर से आवाज आई… मैं एक पढ़ा-लिखा ‘बेरोजगार’ हूँ। क्या? मेरे लिए कुछ कर सकते हैं? बांटने वालों को जोरदार झटका लगा वह बिना कुछ कहे आगे चल पड़े।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अति सुन्दर