श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत एकअतिसुन्दर सार्थक लघुकथा “लाल पालक….”। अपार्टमेंट्स के परिवार प्रत्येक पर्व घर के पर्व जैसे मिल जुलकर मनाते हैं। इस लघुकथा के माध्यम से रोजमर्रा की जिंदगी के बीच उत्सव के माहौल का अत्यंत सुन्दर वर्णन किया है। एक ऐसी ही अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 76 ☆
लघुकथा – लाल पालक ….
गणतंत्र दिवस के लिए अपार्टमेंट सज रहा हैं ।
अपार्टमेंट का बड़ा सुंदर नजारा रहता है और वह भी जहां लगभग चालिस परिवार एक ही छत के नीचे फ्लैटों में रहते हैं।
एक पूरा परिवार बन चुका होता है। सुबह हुआ कि अलग-अलग पेपर वाले, दूध वाले, हार्न बजाते कोई मोबाइल में गाना बजाते और कामवाली बाईयों का आना-जाना।
बस इन सभी के बीच लगातार रद्दी वालों की आवाज वह भी नहीं चूका आने के लिए!! कोई आ रहा कोई जा रहा।
बच्चों की टोली धूप में क्रिकेट खेल रही कुछ बच्चे मोबाइल कान में लगाए छत पर धूप सेंकते नजर आते। कुछ पढ़ाई करते भी दिख जाते हैं।
साथ साथ बड़े बूढ़ों की हिदायत भी चलती रहती है। कहीं पेपर पढ़ रहे हैं। कहीं सब्जी भाजी लिया जा रहा है। कुल मिलाकर बहुत सुंदर माहौल रहता है।
जया कामवाली बाई। बहुत बात करती है। माता – पिता की गरीबी की वजह से किश्चन से शादी कर ईसाई धर्म अपना ली हैं। और बातें भी “आता है” “जाता है” करती है। अपार्टमेंट में एक रिटायर्ड अफसर के यहाँ काम करती है।
सब्जी वाला अपार्टमेंट के अंदर जैसे ही आया उसने आवाज लगाईं। झाड़ू हाथ में लेकर जया बाहर निकली। बालकनी से सीधा झाड़ू लिए ही बोली “हरी पालक है क्या?”
सब्जी वाला कुछ परेशान था। (पता चला रात में कोई बीमार चल रहा था उसके घर) उसने जोर से बोला… “नहीं पीली पालक हैं चाहिए क्या??”
इतना सुनना था, आजू-बाजू की बालकनी से सभी के खिलखिलाने की आवाज जोर हो गई। “उडा़ लो हंसी” गुस्से से जया लाल पीली हो गई और भुनभुनाते जाने लगी।
गणतंत्र दिवस के लिए मानू बिटिया के साथ कुछ बच्चे अपार्टमेंट्स सजा रहे थे।
बिटिया ने हंसकर कहा.. “जया आंटी गुस्सा मत करो हरी पालक, पीली पालक और जब वह बनेगा तो उसका रंग लाल होगा। यही तो पालक का गुण है।”
जया भी हाँ में हाँ मिलाने लगी। सच ही तो है। आखिर पालक खून भी तो बढाता है।
एक बार फिर जया के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। जय जय जया की लाल पालक!!!!!
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈