सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “सफ़र ”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 71 ☆
आँखों के आगे एक कोहरा-
न आगे नज़र आता था, न पीछे;
एक गाड़ी में बैठी हुई
बस किसी और गाड़ी के पीछे-पीछे
धीमी-धीमी रफ़्तार में
ज़िंदगी चल रही थी…
कुछ उतावलापन था
मंजिल तक पहुँचने का,
कुछ छटपटाहट थी
वक़्त ज़्यादा लगने की,
कुछ डर था
कि आगे की गाड़ी का साथ
छूट न जाए,
कुछ उत्सुकता थी
कि सफ़र का अंत कैसा होगा…
उस उतावलेपन, छटपटाहट, डर और उत्सुकता ने
बदल दी मेरी सोच की धारा
और एक डरी हुई मैना की तरह मैं
सिमट गयी ख़ुद ही मैं…
कहाँ जानती थी
कि आगे वाली गाड़ी को शायद
ख़ुद ईश्वर का आशीर्वाद था,
और मेरे भीतर भी
एक ईश्वर था!
जब से यह राज़ खुला है,
हो गयी हूँ बेफिक्र और मस्मौला,
और उडती हूँ अपने ख्यालों के आसमान में
किसी बाज़-सी!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈