हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 72 ☆ एक कहानी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं ।  सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता एक कहानी। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 72 ☆

☆ एक कहानी ☆

चिलमन भी उठा

वो पास भी आए

पर नूर नज़र न आया

थे फ़िक्र के गहरे साये

 

गुम-गश्ता था माजी

कल पर कहाँ ऐतबार?

लकीरें थीं ही नहीं

कैसे महकता प्यार?

 

लबों से लब मिले तो

पर दिल एक न हुए

ज़हन में कसक थी

सिर्फ जिस्म थे छुए हुए

 

किसी ने कुछ न कहा

ज़िंदगी चलती रही

सुबह भी आती रही

शाम ढलती रही

 

हर शबनमी सुबह

आँखें कुछ नम रहीं

ज़िंदगी की आस भी

मानो, कुछ कम रही

 

एक केसरिया शाम

जीवन ढलने वाला था…

पर उसने आँखें खोलीं तो

हर ओर उजाला था

 

अपनी रूह से मिलने

वो अपनी राह निकल गयी

अँधेरे रौशनी में बदले

उसकी भी काया बदल गयी

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈