सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “वो कोह”। )
आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 74 ☆
दामन-ए-कोह ख़ुशी से तर था,
उसका ख़ियाबां-ए-ज़हन गुल से लबरेज़ था,
कि अचानक कहीं से एक ख़ुश-रू अब्र
उसके आसपास हलके से बरसने लगा
और कोह से उसने कहा,
“मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ!”
लाजमी था कोह का पैमाना-ए-मुहब्बत में
पूरी तरह से डूब जाना-
आखिर उसने नगमा-ए-इश्क कहाँ सुना था?
दोनों हाथ पकड़कर साथ घूमते,
अब्र
कभी कोह का माथा चूमता,
कभी उसे अपनी दिलकश बाहों में लेता,
कभी वो रक़्स-ए-मुहब्बत में मशगूल रहते…
अब्र तो आशिक-मिज़ाज था,
नया कोई अफसाना बुनने
चल पड़ा किसी और कोह की तरफ…
दामन-ए-कोह अब ग़म-ए-जुदाई से तर है,
उसके ख़ियाबां-ए-ज़हन के गुल मुरझा चुके हैं,
न उसे इंतज़ार है, न चाहत-ए-उल्फ़त,
ठोस है, सख्त है-
आ जाओ कोई
आंसू ही बरसा दो उसके
कि कोह होने पर उसे गुरुर तो हो!
कोह=hill
ख़ियाबां=bed of flowers
ख़ुश-रू = handsome
अब्र = cloud
रक़्स = dance
© नीलम सक्सेना चंद्रा
आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈