श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना पगडंडी सी लचक कहाँ …। )
☆ तन्मय साहित्य #86 ☆
☆ पगडंडी सी लचक कहाँ … ☆
पगडंडी सी लचक कहाँ
डामर की सड़कों में
कहाँ नजाकत रही आज
लड़की औ’ लड़कों में।।
संशय सदा बना रहता
स्त्रीलिंग पुल्लिंग का
कटे बाल और जींस शर्ट में
खा जाते धोखा,
मुश्किल अंतर करना अब
छुटकों और बड़कों में।
कहाँ नजाकत रही आज
लड़की औ’ लड़कों में।।
संबोधन भी बदल गए
अपनी भाषा भूले
भगदड़ मची हुई, मन में
आकाश कुसुम छू लें,
रंगबिरंगे स्वप्न,अधजगी
निद्रा पलकों में।।
कहाँ नजाकत रही आज
लड़की औ’ लड़कों में।।
घर का स्वाद कर दिया
पिज्जा बर्गर ने गायब
मैगी नूडल बने हुए हैं
अब घर के नायब,
नहीं स्वाद अब रहा
दाल-सब्जी के तड़कों में।
कहाँ नजाकत रही आज
लड़की औ’ लड़कों में।।
कहाँ कहकहे, रौनक
बिसरायें समूह मधुगान
अब न रहा दादा जी का
घर में वैसा सम्मान,
हवा हवाई रौबदार
दादू की झिड़कों में।
कहाँ नजाकत रही आज
लड़की औ’लड़कों में।।
आयातित फैशन का
बढ़ता हुआ कुटिल व्यापार
भ्रमित पीढ़ी को काम नहीं
बेकारी से लाचार,
उलझी युवा शक्ति है
बेफिजूल की शर्तों में।
कहाँ नजाकत रही आज
लड़की औ’ लड़कों में।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0
मो. 9893266014
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈