डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 85 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
पिया मिलन की राह में,
रोज करें शृंगार।
अब तक वो आया नहीं,
ना चिट्ठी ना तार ।।
उसको अब लगने लगा,
अब जीना दुश्वार।
तुझ बिन अब जीवन नहीं,
करना है अभिसार।।
छबि बसंत की दिख रही,
आया है त्यौहार।
फूलों से अब सज रहा,
हर घर बंदनवार।।
प्रभु अब तो तुम जान लो,
नहीं सहेंगे पीर।
धीरज अब मुझमें नहीं,
बदलो अब तकदीर।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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अतिसुंदर ,आनंद आगया पढ़ के