(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की हास्य लघुकथा – तीन विचार चित्र। इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 101☆
हास्य लघुकथा – तीन विचार चित्र
कितना भला था कोरोना .. २०२१ का दिसम्बर
पति सोचेंगे
फिर शॉपिंग का चक्कर, फिर मूवी की फरमाइश…फिर वीक एंड पर होटलिंग, फिर घूमने जाने की बच्चों की फरमाईश, बीबी की नई साड़ी की डिमांड, किटी पार्टी के चक्कर, नई ज्वैलरी खरीदने की जिद्द .. इससे तो कोरोना ही भला था. न रिश्तेदारी में भागमभाग करनी पड़ती थी, न आफिस के दौरे करने परते थे, न बाजार जाकर चुन बीन कर देख भाल कर खरीददारी होती थी, सब कुछ मोबाईल से निपट जाता था, कोरोना का बहाना सब ढ़ांक लेता था, कितना भला था कोरोना.
पत्नी सोचेंगी
हाय कितने मजे थे, शादी के २१ बरस हो गये, इतना घरेलू काम तो इन्होने कभी नही किया, इतना साथ रहने का समय भी कभी न मिला था, थोड़ा बहुत डर था तो क्या हुआ सब कुछ ठीक ही चल रहा था, जैसा भी था पर कोरोना बड़ा भला था.
बच्चे सोचेंगे
न होमवर्क की खिच खिच न स्कूल जाने की झंझट, न परीक्षा का लफडा. ज्यादा पढ़ो तो मम्मी खुद कहती थीं कि थोड़ी देर टी वी देख लो. जरा सा खांसते थे तो मम्मी पापा कितनी चिंता करते थे, कितना अच्छा था कोरोना.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈