श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  “क्योंकि दादी सास भी कभी बहू थी…..” । इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि  प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 21 ☆

☆ व्यंग्य – क्योंकि दादी सास भी कभी बहू थी….. ☆

ब्रिटेन का राजघराना अपनी छोटी बहू मेगन मर्केल के खिलाफ साजिश में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया तो बस इसलिए कि वो रसोईघर में स्टोव का उपयोग नहीं करता. स्टोव फटे उसके लिए जरूरी है कि स्टोव हो. हमारे देश में ये सुविधा है, केरोसिन भी मिल जाता है और यथा जरूरत फटनेवाले स्टोव भी. सास-बहू कनफ्लिक्ट मुँह दिखाई की रस्म से शुरू होता है और क़यामत तक जारी रहता है. ब्रिटेन में मुराद पूरी करनेवाले ओटले, मंदिर या मजार नहीं होते अपन के इधर होते हैं. सासू माँ बहू के नाम का धागा बाँध आकर आये उसके पहले ही बहू सास के नाम का उल्टा स्वस्तिक बनाकर आ चुकी होती है. काले-जादू के धंधे में सत्तर प्रतिशत रेवेन्य तो सास-बहू प्रकरणों से ही आता है. अपन का देश इस मोर्चे पर हमेशा से बहुत आगे रहा है, लेकिन मोनार्की की ताज़ा कहानी ने बरतानिया को भी इंडिया के बराबर ला दिया है.

क्षिप्रा किनारे से लेकर टेम्स नदी के किनारे तक सास-बहू की दास्तान सुनते-देखते लगता है कि इस जहाँ में अब तक का सबसे सुखी इंसान आदम ही हुआ, जब उसने शादी की तब ईव् की कोई सास नहीं थी. वो दो पाटों के बीच फंसे रहने की बेचारगी से बच गया. बाद में ईव् जब पहली बार सास बनी होगी तो बहू की “साँस” अटका दे जैसा कोड-ऑफ़-कंडक्ट दुनिया को दिया होगा. और बहू ने भी सोचा होगा अब कर ले पैंतरेबाज़ी जितनी चाहे – इसका ‘डियर सन’ तो मेरी मुट्ठी में है. आदम और ईव की संतानों की पैंतरेबाज़ी ने मिलियनेयर किसी को बनाया है तो सुश्री एकता कपूरजी को, बाकी सब तो सिर फुटव्वल में व्यस्त हैं, हाउस ऑफ़ विंडसर भी.

हम तो क्वीन एलिज़ाबेथ को कहेंगे कि वे स्टार प्लस के सीरियल्स जरूर देखें, बल्कि एकाध सीरियल बनवा लें, कुंडली भाग्य टाइप. सोप ऑपेरा के कच्चे माल से बंकिघम पेलेस भरा पड़ा है. बहुएँ हैं, भाभियाँ हैं, बिना माँ के लड़के हैं, जेठ है, जेठानी है, एक सास है, सास की सास है, खाया-पिया-अघाया परिवार है, भद्रलोक है, उनकी टुच्ची हरकतें हैं, तनाव है, साज़िश है, बदला है, षड़यंत्र है, और नागिन तो होगी ही. जरूरत है तो बस एकताजी वाला टच देने की. तो हो जाये कैथरीन, कैमिला, मेगन के गालों पर ढलते आंसूओं से भी खराब नहीं होने वाला मस्करा, बुरुगंडी कलर की लिपस्टिकें, करीने से काली की गई आईलाईनरें, घनघोर ग़मगीन सीन में भी दमकते डिजाईनर नेकलेस और कंगन. सीरियलों की सास-बहू घर के काम नहीं किया करतीं. कभी-कभी वे किचन में जाती भी हैं तो चाय में बेहोशी की दवा मिलाने. और आपबीती ! वो किसी टॉक-शो में ओप्रा विन्फ़्रे के सामने बयां नहीं करना पड़तीं, कामवाली सकुबाई से काम चल जाता है. सचमुच अधकचरीसी है ब्रितानी राजघराने की ताज़ा कहानी, इसे प्रोपर्ली शेप देने की जरूरत है.

मेगन मर्केल की अब तक की कहानी में बेवफाई जैसा इम्पोर्टेंट तत्व गायब है. अपन के इधर हर रिश्ता कुछ कहता है, बल्कि कहता कम है छुपाता ज्यादा है. माँ कोई और है जैविक पिता कोई और, दादी किसी और को पोता मानने लगी है, जिसे खानदान का हक़ मिलना चाहिए वो आत्महत्या करने पर उतारू है. मृत्यु में यमराज का कोई दखल नहीं है, प्रोड्यूसर तय करता है कि अनुज कितने इपिसोड के बाद मरेगा. टीआरपी के हिसाब से मरने की तारीख एक्सटेंड भी हो सकती है. कोई केरेक्टर मर जाये तो ये मत समझयियेगा को बैकुंठधाम चला ही गया है, वो आठ इपिसोड के बाद जिन्दा हो कर वापसी कर सकता है. सीधी सादी संस्कारी बहू एक रात अपने पति से धीरे से कहे – ‘मुझे माफ़ कर दो अमन, हमारा वरुण तुम्हारा बेटा नहीं है.’ किसका है ? इस सवाल का जवाब आपको तीन हजार एक सौ इक्कीसवें इपिसोड में मिलेगा. हाउस ऑफ विंडसर में भी संतान के रंग का रगड़ा तो है ही, आर्ची के डीएनए प्रिंस हैरी के डीएनए से डिफरंट बताकर कहानी में ऐसे ट्विस्ट डाले जा सकते हैं. शाही परिवार एक बार मन बनाले तो पटकथा तो हमारे ‘सी’ ग्रेड न्यूज चैनल ही कर देंगे. ऊपरवाले ने जो पेंच किसी केरेक्टर की जिंदगी में नहीं डाले न्यूज चैनल वाले वो पेंच भी डाल सकते हैं. तो हो जाये एक सीक्वल – ‘क्योंकि दादी सास भी कभी बहू थी…..’

© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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