श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है होली पर्व पर विशेष भावप्रवण कविता “होली ”। इस भावप्रवण एवं सार्थक रचना के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 83 ☆
?? होली पर्व विशेष – होली ??
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होली लिए फागुन मास है आई
फूले बगिया बौरै अमराई
रंग बिरंगी रंगों से देखो
प्रकृति ने हैं सुंदरता पाई
?
कुसुम सुहासी लाली सजाई
फूले महुआ सुगंध फैलाई
बैठ के आमो की डाली पर
कोयल देखो राग सुनाई
?
रंग लिए उल्लास हैं आई
सबके जीवन खुशियां बिखराई
भूल के सब राग द्वेष फिर
परंपरा की रीत निभाई
?
सबके मन फिर बात समाई
क्या होली खेले न भाई
दुष्ट कोरोना कोई रंगना
फिर भी हाहाकार मचाई
?
घरों में बनती गुजिया मिठाई
पर भाई पड़ोसन की ठंडाई
हाय ये कैसी हो गई दुनिया
सोच- सोच अब आए रुलाई
?
जीजा साली देवर भोजाई
बस कागज पन्नों में समाई
जानू तुम न खेलना होली
देती हूं तुम्हें पहले समझाई
?
बच्चों में ना पिचकारी आई
मौड़ी रंगों से घबराई
देख-देख व्हाट्एप में सब ने
अपनी अपनी होली मनाई
?
होली खेले ना खेले गुसाई
शुभकामनाओं की बारी आई
भूल के सब पिछली बातों को
सबको देना होली की बधाई
?
रंग बिरंगी होली आई
देखो कैसी मस्ती छाई
रंग बिना जीवन है सुना
होली की हार्दिक बधाई
सबको शुभ हो होली भाई
?
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈