डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 88 – साहित्य निकुंज ☆
☆ लघुकथा – विश्वास ☆
देश का माहौल बहुत खराब है।इस कोरोना महामारी ने सबका सुख चैन छीन लिया है। आज उनको काम से यू.पी. जाना है और रास्ते में थे, तभी पता चला लॉक डाउन में कुछ ढील है तो सारे लोग सड़क पर उतर आए। रास्ते जाम हो गए। तभी नजर पड़ी एक राहगीर रास्ते में बेहोश पड़ा है और उसके सर से खून बह रहा है। इतनी भीड़ में पैदल चल रहे राहगीर को कोई टक्कर मार गया होगा। कोरोना के भय से कोई भी हाथ लगाने को तैयार नहीं लेकिन उनका मन नहीं माना। उनको विश्वास था कि हो सकता है इस बेचारे की जान बच जाए। वह पानी और सैनिटाइजर लेकर नीचे उतरे। उस पर पानी का छिड़काव किया। उसमें कुछ हरकत हुई तब उन्होंने पुलिस को फोन किया। एंबुलेंस बुलाई। उसका फोन दूर गिरा था उन्होंने उसे सैनेटाईज किया। जानना चाहा कि आखरी फोन किसे किया था। इत्तेफाक से वह इसके पिता का नंबर था। सारी जानकारी दे दी गई। उसे बस्ती के अस्पताल में भर्ती करवा दिया और वह खतरे से बाहर है।उनका दृढ़ विश्वास और बढ़ गया।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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