डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 89 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
मटक मटक कर चल रही,
कर सोलह शृंगार।
साजन से वह कर रही,
जन्म जन्म का प्यार।।
अलंकार से हो रहा,
कविता का शृंगार।
शोभा ऐसे बढ़ रही,
रूप रंग साकार।।
गोरी कैसे लिख रही,
अपने भाव विचार।
व्याकुल मन में चल रहा,
करना है अभिसार।।
विनती तुमसे कर रही,
करती हूँ मनुहार।
नयन हमारे पढ़ रहे,
कितना तुमसे प्यार।।
द्वार द्वार पर सज रहे,
मनहर बंदनवार।
राम पधारे राज्य में,
मंगलमय त्योहार।।
संकट की इस दौर में,
कैसे पाएँ त्राण।
जाप करो हनुमंत का,
बच जायेंगे प्राण।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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