श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “अपनी-अपनी जान बचाओ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 80 ☆
☆ अपनी-अपनी जान बचाओ ☆
अपनी-अपनी जान बचाओ
पहले यह सबको समझाओ
कोरोना ने पैर पसारा
आत्मबल ही एक सहारा
मास्क मुँह पर सदा लगाओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
गीता ने जो हमें सिखाया
कोरोना ने कर दिखलाया
धन-दौलत पर मत इतराओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
कोई नहीं है संगी साथी
छूट गए पीछे बाराती
धीरज-धर्म सदा अपनाओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
पल भर में क्या से क्या होता
क्या लाये थे.? किस पर रोता
अहम छोड़ कर अब झुक जाओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
एक आस विस्वास वही है
जीवन की हर सांस वही है
प्रभु चरणों में शीश झुकाओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
दो गज दूरी बहुत जरूरी
रखो समय के साथ सबूरी
जीवन में कुछ पेड़ लगाओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
दिल में गर “संतोष” रहेगा
जीवन में तब जोश रहेगा
मानवता का धर्म निभाओ
अपनी-अपनी जान बचाओ
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
सुंदर अभिव्यक्ति
अच्छी, भावपूर्ण रचना