सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं । वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की ऐसी ही एक संवेदनात्मक भावप्रवण हिंदी कविता ‘दूब…’।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 5 ☆
☆ दूब…☆
दूब तुम भी सुंदर हो,
धरती पर आँचल ओढा देती हो,
रेशम-सा जाल बिछा देती हो,
हरितिमा से सजाकर निखारती हो,
दूब तुम भी सुंदर हो।
दिन-भर बिछ जाती हो,
पाँव तले कुचली जाती हो,
रातभर ओस को ओढ़ लेती हो,
और फिर से हरितिमा बन जाती हो,
दूब तुम भी सुंदर हो।
© सुजाता काळे …
पंचगनी, महाराष्ट्र।
9975577684