डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 91 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
बात बात पर ही किया,
जब उसने प्रतिवाद।
चौके में बर्तन बजे,
बजते जैसे नाद।।
कोरोना के काल से,
मिले मुक्ति भगवान।
बीमारी कुछ भी नहीं,
डरा हुआ इंसान।।
गली गली में शोर है,
कैसी ये दुत्कार।
राजनीति का चक्र है,
उनका ही व्यवहार।।
कवियों के दरबार में,
नहीं बचा है आज।
भाव नहीं नेपथ्य में,
बजे नही है साज।।
अदरक काली मिर्च का,
पीते काढ़ा रोज।
जल्दी ही लगवा रहे,
वही वैक्सिन डोज।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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