श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “अधूरे हिसाब”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 63 – अधूरे हिसाब

मोबाइल की गैलरी से सारे चित्र तो एक झटके में रिमूव हो जाते हैं, किंतु क्या मानस पटल पर अंकित चित्रों से हम दूर हो सकते हैं। इसी उधेड़बुन में  दो घण्टे बीत गए। दरसल कोरोना का टीका तो लगवा लिया पर उसकी फोटो नहीं खिंचवा पाए थे। अब सारे डिजिटल फ्रैंड  हैशटैग कर अपनी-अपनी फोटो मेरी वाल पर चस्पा किए जा रहे हैं और एक मैं इस सुख से अछूती ही रह गयी।

मेरी पक्की सहेली ने समझाया कोई बात नहीं ऐसा करो कि डिजिटल सर्टिफिकेट ही पोस्ट कर दो, अपने नाम वाला, उससे भी काम चल जायेगा। मन को तसल्ली देने के लिए मैंने मैसेज खंगालना शुरू किया तो वहाँ भी मेरा नाम नदारत था। कोई प्रूफ ही नही टीकाकारण का ,अब तो मानो मेरे पैरो तले जमीन ही खिसक गई हो। खैर बुझे मन से स्वयं को समझाते हुए 6 हफ्ते बीत जाने की राह ताकने लगी, पर कहते हैं कि जब भाग्य रूठता है तो कोई साथ नहीं देता, सो जिस दिन बयालीस दिन पूरे हुए उसी दिन ये खबर मिली कि अब तीन महीनें  बाद टीका लगेगा। डॉक्टरों की टीम ने नई रिसर्च के बाद कहा कोविशिल्ड वैक्सीन के दूसरे डोज में जितनी देरी होगी उतना ज्यादा लाभ होगा।

लाभ और हानि के बारे में तो इतना ही पता है कि कोई डिजिटल प्रमाण न होने से टीके की फोटो पोस्ट नहीं हो पाई ,चिंता इस बात की है कि जब दोनों प्रमाणपत्र एक साथ पोस्ट करूँगी तो मेरा क्या होगा? मैंने तो सबकी दो पोस्टों पर लाइक करूँगी पर मेरी तो एक ही पोस्ट पर होगा।

आजकल अखबारों में मोटिवेशनल कॉलम की धूम है और मैं तो पूर्णतया सकारात्मक विचारों को ही आत्मसात करती हूँ, तो सोचा चलो टीकाकरण केंद्र में जाकर ही पता करते हैं। झटपट गाड़ी उठाई और पहुँची तो पता चला ये केंद्र बंद हो चुका है। अब आप दूसरी जगह जाइए। उम्मीद का दामन थामें दूसरे केंद्र में पहुँची। वहाँ पर पूछताछ की तो उन्होंने कहा अभी बहुत भीड़ है, कुछ देर बाद बतायेंगे। पर अब तो 18 प्लस का जलवा चल रहा था तो वे लोग धड़ाधड़ आकर टीका लगवाते जा रहे थे और हाँ सेल्फी लेना भी नहीं भूलते। ये सब देखकर जितनी पीड़ा हो रही थी उतनी तो पहला टीका लगवाने के बाद भी नहीं हुई थी। शाम चार बजे जाकर मेरा नंबर आया तब कंप्यूटर ऑपरेटर ने सर्च किया और माथे पर हाथ फेरते हुए बोला अभी सर्वर डाउन है, कुछ पता नहीं चल पा रहा है, आप कल सुबह 9 बजे आइए तब कुछ करते हैं।

उदास मन से अपना मुँह लिए, मंद गति से गाड़ी चलाते हुए, चालान से बचने की कोशिश कर रही थी। घर पहुँचने ही  वाली थी तभी , बहन जी गाड़ी रोकिए की आवाज कानों में पड़ी। किनारे गाड़ी लगाकर खड़ी की तब तक लेडी पुलिस आ गयी।

कहाँ घूम रहीं हैं , लॉक डाउन है पता नहीं है क्या ?

जी, मैं तो टीका लगवाने का प्रमाणपत्र लेने गयी थी।

अच्छा कोई और बहाना नहीं मिला।

मेम, मुझे दो महीने पहले ही टीका लग चुका है, पर कोई प्रूफ नहीं था, सो उसे ही लेने के लिए टीका केंद्र गयी थी।

कहाँ है दिखाओ ?

वहाँ सर्वर डाउन था इसलिए नहीं  मिला।

कोई बात नहीं चलो 500 रुपये निकालो, चालान कटेगा , तब आपके पास प्रूफ होगा।

मैंने बुझे मन से 500 दिए और  तेजी से गाड़ी भगाते हुए घर पहुँची।

बच्चे गेट पर ही इंतजार कर रहे थे।उतरा हुआ चेहरा देखकर बच्चों ने पूछा क्या हुआ ?

चालान की पर्ची दिखाते हुए मैंने कहा, काम तो हुआ नहीं, 500 की चपत ऊपर से लग गई।

तभी मेरी बिटिया ने तपाक से कहा कोई बात नहीं मम्मी, आप इसी की फोटो खींच कर पोस्ट कर दो, कम से कम एक प्रूफ तो मिला कि आप दूसरी डोज वैक्सीन की लगवाने के लिए कितनी जागरूक है।

तभी मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी कि सही कह रही है, अब मैं फेसबुक व इंस्टा पर यही पर्ची पोस्ट कर लाइक व कमेंट के अधूरे हिसाब पूरे करूँगी।   

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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