हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ किसलय की कलम से # 45 ☆ चेदि के नंदिकेश्वर ☆ डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  एक अत्यंत ज्ञानवर्धक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक आलेख  “चेदि के नंदिकेश्वर”.)

☆ किसलय की कलम से # 45 ☆

☆ चेदि के नंदिकेश्वर ☆

देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की पूजा आराधना तो बहुत बाद की बात है, भोले शंकर के स्मरण मात्र से मानव अपने तन-मन में उनका अनुभव करने लगता है। पावन सलिला माँ नर्मदा की जन्मस्थली अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक 16 करोड़ शिवलिंग तथा दो करोड़ तीर्थ होने की मान्यता सुनकर आश्चर्य होता है। अतैव हम नर्मदातट को शिवमय क्षेत्र भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं माना जाएगा। नर्मदा तट के जनमानस में भगवान शिव के प्रति प्रारंभ से ही अगाध आस्था के प्रमाण उपलब्ध हैं। सोमेश्वर , मंगलेश्वर , तपेश्वर , कुंभेश्वर , शूलेश्वर , विमलेश्वर , मदनेश्वर , सुखेश्वर , ब्रम्हेश्वर , परमेश्वर , अवतारेश्वर एवं बरगी जबलपुर (मध्य प्रदेश) के नजदीक नंदिकेश्वर शिवलिंग आज भी विद्यमान हैं। नर्मदा में डुबकी लगाकर निकाले गए पाषाणों की शिवलिंग के रूप में स्थापना कर भक्तगण पूरी आस्था के साथ पूजा करते हैं। माँ नर्मदा की धारा में शिव रूपी पाषाण सहजता से देखे जा सकते हैं। ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ के परिवर्तन की स्थिति में नर्मदेश्वर की ही स्थापना की जाती है। नर्मदा एवं भगवान शिव की कृपा से नर्मदा के दोनों तटों के एक डेढ़ किलोमीटर क्षेत्र में कभी अकाल या दुर्भिक्ष नहीं पड़ता। इसीलिए यह क्षेत्र सुभिक्ष क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में यह भी देखा गया है कि हमारे अनेक ऋषियों ने नर्मदा के किनारे जिस स्थान को अपनी तपोस्थली बनाया अथवा जहाँ ठहरे वहाँ उन्हीं नाम से उस स्थान अथवा कुंड का नामकरण हो गया।

पौराणिक कथाओं, नर्मदा पुराण, धार्मिक ग्रंथों एवं ऐतिहासिक अभिलेखों के आधार पर प्राचीन चेदि के अंतर्गत महिष्मती एवं त्रिपुरी आती थी। महिष्मती के महाबली सहस्रार्जुन, परशुराम के पिताश्री जमदग्नि एवं चेदि नरेश शिशुपाल को कौन नहीं जानता। नर्मदा तट भगवान दत्तात्रेय, शिवभक्त रावण की तपोभूमि एवम् भ्रमण स्थली रही है। चेदि की प्राचीनता का प्रमाण इसी से लगाया जा सकता है कि चेदि नरेश स्वयं सीता जी के स्वयंवर में गए थे। बाल रामायण के अनुसार:-

सीतास्वयंवर निदान धनुर्धरेण

दग्धात्पुर त्रितयतो बिभूना भवेन्।

खंड निपत्य भुवि या नगरी बभूव

तामेष चैद्य तिलकस्त्रिपुरीम् प्रशस्ति।।

इसी तरह स्वयं भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान भी नर्मदा तट पर ही किया था। परशुराम द्वारा सहस्रार्जुन के पुत्रों को मारने के उपरांत भयभीत हैहयवंशी राजा सुरक्षा की दृष्टि से त्रिपुरी (जो वर्तमान में जबलपुर, भेड़ाघाट मार्ग पर पश्चिम दिशा में 13 किलोमीटर दूर तेवर है) आ गए और त्रिपुरी को ही राजधानी के रूप में अपनाया । प्रमाणित है कि इसी त्रिपुरी में त्रिपुरासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने त्रिपुर नामक राक्षस का वध किया था।

बलशाली त्रिपुरासुर ने भगवान शिव के विश्वकर्मा द्वारा निर्मित अद्भुत रथ को भी जब छतिग्रस्त कर दिया तब अपने आराध्य की सहायतार्थ भगवान विष्णु ने मायावी बैल नंदी का रूप धारण कर रथ को अपने सींगों से ऊपर उठा लिया था। उसी समय  भगवान शिव त्रिपुर राक्षस का वध करके त्रिपुरारि अर्थात त्रिपुर के अरि (दुश्मन) नाम से विख्यात हुए। इसी तरह जैसा सभी जानते हैं कि विष्णु के आराध्य भगवान शिव ही हैं। अतः इस त्रिपुरासुर संग्राम स्थल पर विष्णु ने नंदी का रूप धारण किया था, जिस कारण नंदी के ईश्वर (आराध्य) अर्थात नंदिकेश्वर शिवलिंग की स्थापना की गई यहाँ से लगभग 7 किलोमीटर दूर जिस स्थान पर नंदी रूपी विष्णु भगवान ने विश्राम किया था वह स्थान नाँदिया घाट नाम से विख्यात है। नंदिकेश्वर के समीप ही भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि की तपोभूमि के पास जमदग्नि कुंड एवम् ब्रह्महत्या के पाप से भी मुक्ति दिलाने वाले हत्याहरण कुंड का स्थित होना समसामयिक तत्त्वों की पुष्टि करता है। ज्ञातव्य है कि इनमें से अनेक स्थल नर्मदा नदी पर बरगी बाँध बनने के कारण जलमग्न हो चुके हैं। हम पाते हैं कि त्रिपुरासुर वध विषयक शिलालेख से प्रतीत होता है कि शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध देवासुर संग्राम की कथा नहीं वरन आर्य एवं अनार्य जातियों के संघर्ष का प्रतीक है। महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 5-4 छंद 8 में त्रिपुरी एवं चेदि का उल्लेख मिलता है। प्रामाणिक रूप से उपरोक्त तथ्यों की ओर ध्यानाकर्षण का मात्र उद्देश्य वर्तमान प्रामाणिक स्थल हमारे पुराने एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कहे जा सकते हैं । जबलपुर जिले के बरगी नगर स्थित नंदिकेश्वर शिवलिंग की स्थापना परशुराम काल में ही की गई थी विद्वानों द्वारा की गई काल गणना के अनुसार राम जन्म के पूर्व परशुराम हुए थे। नंदिकेश्वर शिवलिंग का स्थापना काल लगभग 8 लाख वर्ष ही माना जाना चाहिए।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈